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________________ ८२ -श्री मोहविजेता स्थूलभद्र पाटलीपुत्र के शकटाल मंत्री का ज्येष्ठ पुत्र स्थूलभद्र रूपकोशा नामक एक नर्तकी के प्रेमपाश में जकड़ा गया। प्रेम के बंधनवस माता-पिता की आबरू की परवाह न की, भगिनीयों के स्नेह को वह भूल गया और लघु बंधु श्रीयक की सीख भी कुछ काम न लगी। ___ रूपकोशा के देहसुख में उसे स्वर्ग के सुख भी धुंधले लगने लगे। रूपकोशा के जूडे के लिये वह गुलाब के फूलों की वेणी स्वयं गूंथता था। रूपकोशा के ओष्ठ पर लाल रंग की लाली वह स्वयं लगाता था। विविध आभूषणों से रूपकोशा के देह को स्वयं सजाता था। प्रणय के रंगरांग खेलते हुए दोनों समय का होश गँवा बैठे थे। दिन, महिने, साल रंगराग में गूजर गये। इस प्रकार करते करते बारह वर्ष बीत गये । स्थूलभद्र के पिता शकटाल पाटलीपुत्र में राजा के अत्यंत प्रजाप्रिय मंत्री थे। उनके प्रति वररुचि नामक विप्र अत्यंत इर्ष्या करता था। वह लगातार शकटाल के विरुद्ध राजा के कान भरता था, लेकिन राजा उसकी बातों को महत्त्व देता न था। शकटाल के घर श्रीयक के ब्याह प्रसंग पर राजा पधारनेवाले थे। उनके सम्मान के लिये शस्त्रों का संग्रह शकटाल ने घर में किया था। वररुचि ने इस मौके का फायदा उठाया। उसने राजा को कहा, 'आपका राज्य छीनने के लिये शकटाल ने शस्त्रों का भण्डार इकठ्ठा किया है। आप जाँच करवाइये।' राजा के जाँच कराने पर शस्त्र संग्रह की बात सच्ची लगी और राजा का क्रोध आसमान पर पहुंचा। ___ राजा ने शकटाल के समग्र वंश का नाश करने का निर्णय ले लिया। शकटाल को इस बात का पता चल गया। राजा के कोप से अपने कुटुम्ब की रक्षा के लिये शकटाल ने अपना आत्मबलिदान देने का निर्णय लिया। पुत्र श्रीयक को शकटाल ने कहा : बेटा! कल जब मैं महाराजा को प्रणाम करूँ तब तू तलवार से मेरा मस्तक उडा देना।' ___'परंतु पिताजी! पितृहत्या का अपवित्र पाप मुझसे कैसे होगा?' श्रायक की मनोवेदना वाचा ले रही थी। जिन शासन के चमकते हीरे • २१४
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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