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________________ क्योंकि उसके हृदय में उस समय मिथ्यात्व प्रवेश कर चुका था; मगर वह चर्चा न करके चुप ही रहा। ___एक बार जितशत्रु राजा घोडे पर सवार होकर बड़े परिवार के साथ नगर के बाहर एक खूब दुर्गंध फैलाती हुई खाई के समीप से गुजर रहा था, उसमें रहे पानी का रंग खराब था और सडे हुए मुर्दे जैसी गंध उसमें से आ रही थी। संख्याबद्ध कीडों से गंदा पानी खदबदा रहा था। वहाँ पानी की असह्य दुर्गंध से राजा को नाक दबाना पड़ा। इस दुर्गंध से उबकर थोडा आगे जाकर उसने कहा, 'कितना खराब है यह पानी? सडे मुर्दे की तरह गंध मार रहा है। उसका स्वाद और स्पर्श भी कितना बुरा होगा?' राजा की यह बात भी ज्ञाता और द्रष्टा मंत्री के सिवा सबने स्वीकृत की। सिर्फ सुबुद्धि मंत्री ने कहा, 'स्वामिन् ! मुझे तो इस बात में कुछ भी नवीनता नहीं लगती। मैंने पहले कहा था उस प्रकार पुद्गलों के स्वभाव की ही सब विचित्रता है। राजा जिनशत्रु को बुरा लगा। उसने सुबुद्धि को कहा, 'तेरा अभिप्राय बुरा नहीं है। मुझे तो तेरा कथन दुराग्रहभरा ही लगता है। जो अच्छा है वह अच्छा ही है और जो बुरा है वह बुरा ही है। उसका स्वभाव परिवर्तन हो जावे ऐसा तो होता होगा क्या? राजा के कथन पर से सुबुद्धि को लगा, वस्तुमात्र परिवर्तनशील है' यह बात राजा जानता नहीं है; सो मुझे प्रत्यक्ष प्रयोग करके दिखाना चाहिये कि जैन सिद्धांत में कहा वस्तु का स्वरूप बराबर समझना चाहिये? ऐसा विचार करके मंत्री ने बाजार से नौ कोरे घड़े मंगवाये और सेवकों द्वारा उस गंदी खाई का पानी उन घड़ो में छानकर भरवाया। तत्पश्चात् घड़े सात दिन तक बराबर बंद करके रखे। तत्पश्चात् अन्य नौ घड़ो वह पानी छान कर भरवाया। इस प्रकार लगातार सात सप्ताह तक किया। सातवें सप्ताह उस पानी का वर्ण, गंध, रस और स्पर्श स्वच्छ से भी स्वच्छ पानी जैसा हुआ। उस उत्तम पानी को - जल को ज्यादा उत्तम बनाने के लिये सबद्धि ने उसमे सुगंधित मोथ वगैरह द्रव्य मिलाये और राजा के सेवकों को वह पानी दिया और वह पानी भोजन समय पर राजा को देने की सूचना दी। राजा ने भोजन किया, राजा के सेवक ने वह पानी दिया। भोजन पश्चात् राजा ने पानी के खूब बखान किये और भोजन करने साथ में बैठे हुए मनुष्यों को कहा, 'हमने जिन शासन के चमकते हीरे • २०९ ૧૪
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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