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- सुबुध्दि मंत्री
जितशत्रु राजा चम्पा के राज्य का स्वामी था। उसे धारिणी नामक पट्टरानी थी। अदीनशत्रु नामक उसका युवराज था। राज्य का सब कार्यभार सुबुद्धि नामक श्रमणोपासक उसका मंत्री चलता था।
सुबुद्धि विवेकशील श्रावक था। जितशत्रु राज्य कारभार में इस मंत्री की सलाह लेता। एक बार राजाने अपने यहाँ महोत्सव मनाया उस निमित्त पर उसने अपने यहाँ राज्य के अधिकारी सामंत एवं अग्रणी नागरिकों को भोजन के लिये निमंत्रण दिया। ___पांच पकवान, कई सब्जियाँ इत्यादि सुंदर प्रकार की रसवंती रसोई तैयार हुई। सबके साथ भोजन करते हुए राजा ने खूब रसपूर्वक अपनी रसोई की प्रशंसा की। सबने राजा की हाँ में हाँ मिलाई परंतु विवेकशील और गंभीर मंत्रीने थोड़ी देर बाद राजा को कहा, 'प्रभु! आपने कहा था वह बराबर है। पुद्गल के इस प्रकार के स्वभाव में कुछ भी नया नहीं है फिर भी ये सब चीजें आमतौर से अच्छी ही हैं या आमतौर पर बुरी है यूं नहीं कहा जा सकता। जो विषय आज मनोहर दिखता है, वह विषय दूसरे पल में खराब बन जाता है। जो पुद्गल एक पल श्रवण को पसंद हो ऐसा मधुर होता है, तो दूसरे पल श्रवण को नापसंद हो ऐसे कठोर और कर्णकटु बन जाते हैं और जो पुद्गल आँख को अत्यंत प्रसन्नता देनेवाले होते हैं वे कई बार देखने भी न चाहो ऐसे हो जाते हैं । सुगंधी पुद्गल कई बार सिर फट जावे उतने दुर्गंधयुक्त हो जाते हैं; और दुर्गंधी पुद्गल सिर को तरबतर कर दे ऐसे सुवास देनेवाले भी बन जाते हैं । जीभ को स्वाद देनेवाले पुद्गल दूसरे पल बेस्वाद
और चखना भी न चाहे ऐसे बन जाते हैं। तो कोई बार मधुर भी बन जाते हैं । जिन पुद्गलों को स्पर्श करने का हमें बार बार मन होता है वहीं पुद्गल कई बार छूना भी न चाहे ऐसे हो जाते हैं। इससे विरुद्ध परिणाम भी कई बार आते हैं । अमुक वस्तु अच्छी और फलां वस्तु खराब है ऐसा - आमतौर पर नियम नहीं। कई बार अच्छी चीजे संजोगवशात् बिगड भी जाती है और खराब चीजे सुधर भी जाती है। वह तो मात्र पुद्गलों के स्वभाव और संयोग की विचित्रता है।
विवेकशील सुबुद्धि की ये तत्त्व भरपूर बाते जितशत्रु को पसन्द आयी नहीं,
जिन शासन के चमकते हीरे . २०८