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________________ उत्तर सुनकर राजा हक्का बक्का रह गया। उसने नहीं सोची हुई परिस्थिति यूं सहसा खडी हो गयी, वह विचारमग्न बना। निर्मला ने राजा को कहा, 'राजन्! आप प्रजा के मालिक हो, प्रजा के पालक पिता हो । प्रजा आपके पुत्र-पुत्री रूपी संतति है । प्रजा के शील, प्रजा की पवित्रता और उसका धर्म - इन सबके रक्षक आप, आज आपकी पुत्री समान कही जाऊं ऐसी; मेरा शीलधन लूटने आप यहाँ आये हैं; यह आपके जैसे प्रजापालक को लांछन रूप नहीं है? आपके जैसा पिता, मोदी की झूठन जैसी मुझे, देखकर-सुनकर मोहवश बनकर अकार्य करने के लिये आप तैयार हुए हो - यह समझ में आता है, लेकिन आप जैसे नहीं समझते यह आश्चर्य जैसा है।' राजा के दिल में ये शब्द आरपार हो गये। उसके बंध विवेक-चक्षु खुलने लगे। उसने फिर से पूछा, 'इन विविधरंगी कीमति कटोरों में एक सा दूध क्यों थोडा थोडा रखा है? एक ही प्याले में सब समा सके ऐसा था, तो सब प्याले बेकार क्यों बिगडे?' नरम स्वर में राजा ने हृदय की गुत्थी बताई। ___निर्मला जवाब देने के लिये तैयार थी। राजा की सुध-बुध खोयी हुई आत्मा को ठिकाने लगाने के लिये सावधान थी। उसने स्पष्टता की, 'महाराज! ये प्याले बिगाडे परंतु उसकी किंमत क्या है? प्याले बिगड़े वह आपसमझ सके परंतु आपके करोड़ों-अरबो की संपत्ति से भी अधिक मूल्यवान यह मानवभव बिगाड़ने के लिये तैयार हुए हो; इसका क्या? अलग अलग रंग के प्यालों में चीज तो एक ही थी, यह आप जान सके; तो रूप-रंग या देहाकृति से अलग अलग मानी जाती स्त्रियों में चीज तो एक ही है। फिर भी आप इस प्रकार पागल बनकर अधम मार्ग पर जाने के लिये तैयार हुए हो - यह आपके जैसे नवपुंगव राजा को कलंकरूप अपकृत्य नहीं है क्या? आपके अंधेपन को टालने के लिए ही मैंने यह सब किया है। इसके सिवा आपके अंतर्चक्षु पर से यह मोह का आवरण किसी भी प्रकार से हट सके ऐसा न था। निर्मला जैसी सुशील सती स्त्री के दृढतापूर्वक कहे शब्द राजा के अंतर को प्रकाशित कर गये। उसकी अज्ञानता के पटल दूर हुए और तबसे उसका जीवन राह बदल गया। खराबे में चढ़ी अपनी जीवन नैया के राह पर लाकर अपने लिये मार्गदर्शक गुरु बननेवाली मोदी की स्त्री निर्मला ने किये हुए अनन्य उपकार को राजा प्रजापाल जीवनभर कदापि न भूल पाया। ___वह वापिस लौटा सदैव के लिये ऐसे अकार्य से। धन्य हो नारीशक्ति की पवित्रता को! वाकई में ऐसी पवित्र नारी, नारायणी है। जिन शासन के चमकते हीरे • २०७।
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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