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________________ तुरंत राजा सत्तावाही आवाज में बोला, 'कौन है यहाँ?' 'जी हुजूर मैं हूँ' कहती हुई एक दासी हाजिर हुई। राजा ने पूछा, 'यह सब थाल किसने भेजे हैं?' 'मालिक! हमारी सेठानी ने।' दासी ने उत्तर दिया। 'कहाँ है तेरी सेठानी?' राजा ने पूछा। दासी ने कहा, 'खुदाविंद! आप नामदार के स्वागत की योग्य तैयारी करने के लिए...' राजा ने समझा, अभी थोड़ी देर में सुंदर शृंगार सज-धज कर निर्मला वहाँ आयेगी। इतने राजा के लिये पेय चीजें हाजिर हुई। -१५-२० महामूल्य प्यालों में केसरी दूध रखा हुआ था। राजा प्याला उठाकर दूध देखने लगा। दूसरा, तीसरा यों प्याले उठाकर देखने पर उसे लगा कि हरेक प्याले में एक ही चीज थी। उसने चखकर देखा कि कोई भी प्याले में अन्य पेय न था। राजा ने दासी को हुक्म दिया, 'जा, तेरी सेठानी को बुला ला ।' शीघ्र ही निर्मला पास के कमरे से वहाँ आ पहुँची। उसका अनुपम तेजस्वी देहलावण्य देखकर राजा की विकारी दृष्टि में यह तेज असह्य बनता जा रहा था। पवित्र तथा सत्त्वशाली निर्मला की भव्य देहलता, तेजपुंज मुखाकृति और मधुर स्मित प्रजापाल राजा को मूर्च्छित बनाने लगे। , थोडी देर चुपकीदी छा गई। राजा ने मौन तोडा । कुछ श्वास घोंते हुए मीठे शब्दों में हँसते हँसते वह बोला, 'यह सब क्या खेल है?' ___ 'किसे आप खेल कह रहे हो?' निर्मला ने हृदय के भावों को गूढ रखकर छोटा सा जवाब दिया। 'क्यों! इतना नहीं समझा जा सकता?' प्रजापाल ने दुबारा मीठी आवाज़ में कहा। ___निर्मला अपनी चाल में थी। मार्ग भूले हुए राजा को राह पर लगाने का मौका उसने जानबुजकर खड़ा किया था। उसने व्यंग में जवाब दिया : 'मालिक! समझ में आता है वह नहीं समझ सकती और नहीं समझ में आता है वह समझ सकती हूँ।' राजा मोदी की स्त्री में रही हुई गजब की चालाकी प्रथमबार देखकर चकित हो गया। रूप के साथ चतुराई के तेज का मिश्रण देखकर वह दंग हो गया। ऐसी चकोर स्त्री की वाणी में रही गूढता को समझने के लिए उसने खूब कोशिश की। अंत में चिढ़कर वह बोला : यह किसीकी खाई हुई झूठी मीठाई यहाँ क्यों रखी है? मैं क्या यहाँ किसीकी झूठन खाने आया हूँ?' 'महाराज! इसमें नया क्या है?' आप यहाँ किसलिए आये हो? यह मैं और आप ही जानते हैं । परायी झूठन को अपवित्र करने ही आप यहाँ पधारे हो। अब यह कहाँ अनजाना है?' निर्मला ने मोहक लेकिन वेधक जबान में राजा को स्पष्ट शब्दो में सुना दिया। जिन शासन के चमकते हीरे . २०६
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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