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तो वह छिपाया हुआ किस प्रकार जान सका?' तत्पश्चात् भोजन करके दोनों सो गये। उस समय मौका देखकर वह जारपुरुष निकल गया। यह सब देवता तो जानता था फिर भी उसने मौन रखा।
तत्पश्चात् भानजे ने मामा को पूछा, 'यह आपके शामले का विवाह क्यों नहीं करते?' तब मामा ने कहा, 'हे भानजे! यह मनोरथ धन बगैर कैसे पूर्ण होगा?' भानजा बोला, 'हे मामा! ऊठो। मैं तुम्हें पृथ्वी में छिपा धन बताऊंगा। ऐसा कहकर स्त्री के देखते ही उसने भूमि मे गाढा हुआ धन निकाल दिया। देखकर स्त्री बिलख पडी और मन में बोली, 'मैंने चोरी करके जितना धन गुप्त रखा था वह सर्व इसने प्रकट कर दिया। इसलिए वाकई में यह कोई डाकिनी ही है। ननन्द का पुत्र नहीं है, वह यहाँ आया कहाँ से? तो भी उसका अनुनय अच्छी तरह से करूं । नहीं तो कोपित हुआ है तो मेडी सब गुप्त बात प्रकट कर देगा।' ऐसा सोचकर अंदर से कालुष्य भाव रखकर बाहर से मीठी वाणी बोली : 'हे भानजे! तुम्हारी बुद्धि को धन्य है, हमारी दरिद्रता का तुमने नाश कर दिया।'
श्रेष्ठि ने शुभ दिन देखकर पुत्र विवाह उत्सव का प्रारंभ किया। उस समय अपने इष्ट जारपति को उस स्त्री ने आमंत्रण दिया और समझाया, 'तूं स्त्री वेष धरकर सब स्त्रियों के साथ भोजन करने आना।' शादी के दिन वह जार पुरुष स्त्री वेष पहिनकर आया। उसे स्त्रियों के मध्य में बैठा देखकर भानजा बोला, 'मामा! आज परोसने के लिए मैं रहूँगा।' मामा ने कहा, 'बहुत अच्छा।' वह परोसने लगा। परोसते परोसते जब वह उस जार के पास गया तब उसने धीमे से कहा, 'तूझे चरनी में जर्जरित किया था वही तू है न? उसके 'ना' कहने पर इस प्रकार दो तीन बार कहा, तब अन्य लोगों ने भानजे को पूछा, 'तू बारबार इस मुग्धबाला को क्या पूछता है?' तब भानजा बोला, 'इस स्त्री को मैं परोसने जाता हूँ तब वह कुछ भी लेती नहीं है और सर्व पकवान का निषेध करती है। तब मैं उसे कहता हूँ, 'हे स्त्री जब तू थोडा भी खा नहीं रही है तो स्त्रियों के मध्य बैठना तेरे योग्य नहीं है। त थोडी भूखी लग रही है।' इस प्रकार बोलकर देवता ने उसको कुछ भी परोसा नहीं। तब भोगवती को उसके लिए बड़ा उचाट हुआ। वहाँ से वह उठी और गुप्त रीत से लड्ड लेकर उसकी थाली में परोस दिये । उस जार ने थोड़े खाये और चार लड्डु अपनी कुक्षि में छुपा लिये।
सर्व स्त्रियाँ खा चुकी तब भानजा बोला, 'हरेक स्त्री मेरे मामा के मण्डप को अक्षत से बधावे । यह सुनकर स्त्रियों ने मांगलिक के लिए मण्डप की अक्षत से पूजा की तब वह जार मण्डप बधाने आये नहीं। तब भानजा बोला, 'हे माता! आप क्यों मण्डप बधाती नहीं है? स्त्रियों की पंक्ति में भोजन करने बैठी थी तो अब
जिन शासन के चमकते हीरे • २०२