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________________ भोग भोगने लगी। ___एक बार शांतिनाथ प्रभु के अधिष्ठायक देव ने सोचा, 'इस समय अनेक लोगों के मन को आनन्द देनेवाली और उदार ऐसी, धूपादिक सुगंधी द्रव्यों से भगवान की पूजा होती क्यों नहीं है?' तत्पश्चात् अवधिज्ञान के उपयोग से भोगसार की | दरिद्रता और उसका कारण जानकर उसने सोचा, 'यह श्रेष्ठि जिनेश्वर का पूर्णभक्त है और आज उसे चौरे की फसल काटने का समय आया है; और उसकी स्त्री कुलटा बन गई है और वह श्रेष्टी पर जरा सा भी भक्तिभाव रखती नहीं है सौ मुझे इस श्रेष्ठि का सांनिध्य करना चाहिये।' ऐसा सोचकर देवता ने श्रेष्ठि के भानजे का रूप लिया और मामा के घर जाकर मामी को प्रणाम किये व पूछा, 'मेरे मामा कहाँ है?' मामी बोली, 'तेरे मामा खेत में गये हैं, वहां हल जोत रहे होंगे।' यह सुनकर वह खेत में गया। वहाँ मामा ने पूछा, 'तू क्यों आया है?' भानजे रूपी देवता बोला, 'मैं सहायता करने आया हूँ।' मामा ने कहा, 'घर जाकर खा ले।' भानजा बोला, 'हम साथ ही खायेंगे।' मामा ने कहा, 'आज खेत में कटाई का काम चल रहा है, जिससे बडी देर हो जायेगी और तू बालक है तो भूख कैसे सहन कर पायेगा?' भानजे ने कहा, 'कुछ हरकत नहीं, मैं भी आपके साथ कटाई का कार्य करूंगा।' ऐसा कहकर उसने दैवी शक्ति से सम्पूर्ण खेत की फसल कटाई थोड़े समय में पूर्ण करके एकत्र कर ली। तत्पश्चात् मामा बोला, 'ये सब चौरे घर किस प्रकार ले जायेंगे?' यह सुनकर वह देवता सर्व चौरे उठकार घर की ओर चला। उन्हें आता देखकर उस स्त्री ने घर में आया हुआ जार पुरुष चरनी में छुपा दिया और लपसी वगैरह मिष्ठान एक कोठी में छिपा दिये। इतने में भानजे ने मामी को जुहार करते हुए कहा, 'मामा पधारे हैं उनकी आवाभगत करें।' ऐसा बोलते बोलते चौरा का भारा जोर से चरनी में डाला और दाने निकालने के लिये चौरे कूटने लगा। उसके प्रहार से वह जार पुरुष जर्जरित हो गया और स्वयं ही मृत्यु पा जायेगा ऐसा मानने लगा। भोगवती ने अपने जार पुरुष को मृतप्रायः होता देखकर अपने भानजे को कहा, 'आप दोनों थक गये होंगे, इसलिये पहले भोजन कर लो।' यह सुनकर मामा-भानजा दोनों भोजन करने बैठे, तो मामी चौरा आदि कुत्सित अन्न परोसने लगी। तब भानजा बोला, 'ऐसा कुत्सित अन्न मैं नहीं खाऊँगा।'मामी बोली, । 'अच्छा खाना मैं कहाँ से दूं?' भानजा बोला, 'हे मामी! मैं यहाँ बैठे बैठे कोठी में प्रत्यक्ष लपसी देख रहा हूँ वह क्यों नहीं परोस रही हो? स्वामी से अधिक कोई नहीं है ऐसा निश्चय जानना।' यह सुनकर मामी तो चकित ही हो गयी। बाद में लपसी परोसकर उसने विचार किया, 'अहो! यह तो बड़ा आश्चर्य! मेरी गुप्तता इसने कैसे जान ली? वाकई में इसमें कोई भूत, प्रेत, व्यंतर या डाकिनीपना होना चाहिये, नहीं जिन शासन के चमकते हीरे • २०१
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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