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-श्री भोगसार
कांपिल्यपुर में भोगसार नामक बारह व्रत को धारण करनेवाला श्रावक रहता था। उसने श्री शांतिनाथ भगवान का प्रासाद बनवाया था। वहाँ वह हमेशां किसी भी प्रकार की लालसा बगैर भगवान की तीन काल की पूजा करता था। एक बार उसकी स्त्री का आयुष्य पूर्ण हो जाने से मृत्यु हो गई। तब 'स्त्री के बिना घर का निर्वाह चलेगा नहीं' ऐसा मानकर उसने दूसरी स्त्री से ब्याह किया।वह स्त्री स्वभाव से अति चपल थी। इस कारण उसने दूसरी स्त्री से ब्याह किया। वह स्त्री स्वभाव से अति चपल थी। इस कारण उसने गुप्त ढंग से धन इकट्ठा करने लगी और अपनी इच्छानुसार खाने-पीने लगी। क्रमानुसार श्रेष्ठी का सर्व धन खत्म हो गया इससे वह दूसरे गाँव में रहने गया। परंतु दोनों प्रकार की जिनपूजा (द्रव्य पूजा तथा भाव पूजा) वह भूलता न था। उसमें भी वह भावपूजा तो हमेशा त्रिकाल करता। ___ एक बार उसकी स्त्री तथा अन्य कई लोगों ने उसे कहा 'हे श्रेष्ठि! निग्रह या अनुग्रह के फल को न देनेवाले वीतराग देव को आप क्यों भजते हो? उसकी भक्ति करने से उलटा आपको प्रत्यक्ष दारिद्र प्राप्त हुआ।इसलिये हनुमान, गणपति, चण्डिका, क्षेत्रपाल वगैरह प्रत्यक्ष देवों की सेवा करो जिससे वे प्रसन्न होकर तत्काल मन चाहा फल दे।'
इस प्रकार सुनते ही श्रेष्ठिने विचार किया, 'अहो! ये लोग परमार्थ से अनजान है और मोहरूपी मदिरा का पान किया होने के कारण ज्यों त्यों बोल रहे हैं। पूर्व जन्म में न्यून पुण्य करके इस जन्म में संपूर्ण पुण्य के फल भोगने की स्पृहा करते हैं। यह सर्व मिथ्यात्व की मूढ़ता की चेष्टा है। यहाँ हनुमान, गणेश वगैरह देव क्या निहाल कर देते हैं । जैसा बोओ वैसा ही काटो, इसमें उनका कोई दोष नहीं है परंतु संसार के दःखो का विस्मरण करने के लिये परमात्मा का स्मरण अहर्निश करना चाहिये, क्योंकि वीतराग के गुणों को याद किये बिना संसार का मोह कैसे नाश पाये? मिथ्यात्व में मगन बने मूढ पुरुषों को धिक्कार है, जो सांसारिक इच्छा पूर्ण करने के लिये देव-देवीयों को भजते हैं और मानते हैं कि मेरी इच्छा इन देवों ने पूर्ण की। यह मिथ्या भ्रमणा है। ऐसा सोचकर श्रेष्ठि ने अपने मन में जरा भी विचिकित्सा धारण नहीं की। धन अभाव के कारण श्रेष्ठि खेती करने लगा। उसकी स्त्री हमेशा पकवान वगैरह पनपसंद भोजन करती है और श्रेष्ठि को चौरा वगैरह कुत्सित अन्न देती है। इस कारण श्रेष्ठि तो मात्र नाम से भोगसार ही रहा परंतु उसकी स्त्री तो वाकई भोगवती बनी । यथाक्रम कुलटा बनी और पर पुरुष के साथ यथेष्ट
जिन शासन के चमकते हीरे • २००