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________________ हुआ। वहाँ घोघा राणा के मंत्री के घर सेवक बनकर रहा। एक बार राजा ने कई अश्व मोल लिये। उसका धन देने के लिये मंत्री को कहा, मंत्री ने कहा, 'मेरे पास धन नहीं है।' राजा ने पूछा, 'क्यों? धन कहाँ गया? हिसाब दिखाओ।' मंत्री दिग्मूढ़ हो गया, उससे वह कुछ बोल सका नहीं। राजा ने तत्काल उस पर पहरा लगा दिया। यह समाचार मंत्री की स्त्री को मिलते ही सर्व वृत्तांत पेथड को बताया। पेथड राजा के पास आया और बोला, 'स्वामी! मंत्री को भोजन के लिए भेजो।' राजा ने कहा : 'बहीखाते देखे बगैर भेजूंगा नहीं।' पेथड़ ने कहा : 'मैं पेथड नामक उसका सेवक हूँ एक वर्ष का हिसाब मैं दूंगा।' बाद में राजा ने उसे छोड़ा। मंत्री को भोजन कराकर उसे राजा के सम्मुख पेश किया। पेथड को चतुर जानकर राजा ने उसे मंत्री बनाया; इससे अल्प समय में पेथड के पास पाँच लाख द्रव्य की संपत्ति इकठ्ठी हो गयी। इसके पश्चात् जो भी अधिक लाभ हुआ उससे उसने चौबीस तीर्थंकरों के चौरासी प्रासाद कराये। अपने गुरु वहाँ पधारे तब उनको नगर में प्रवेश करवाकर बहत्तर हजार द्रव्य खर्च किये। बत्तीस वर्ष की आयु में उन्होंने शीलव्रत ग्रहण किया। बावन घडी प्रमाण सुवर्ण देवद्रव्य में देकर इन्द्रमाल पहनी और गिरनार तीर्थ दिगम्बरों के कब्जे में जाता हुआ बचालिया। सिद्धगिरि पर श्री ऋषभदेव प्रभु के चैत्य को इक्कीस घड़ी सुवर्ण से मढ़कर मानो सुवर्ण का शिखर हो ऐसा सुवर्णमय बनवाया। इस प्रकार बहुत सा द्रव्य धर्मकार्य में लगाया। यह पाँचवां जो परिग्रह परिमाण नामक व्रत है वह धर्म के लिये संपत्ति का एक महत्त स्थान है, उसे संपादन करके जिस प्रकार पेथड शाह ने स्थान स्थान पर समृद्धि और सुख संपादन किया वैसे हर कोई उस व्रत को दृढ़ता से धारण करें। • कंचन तजवो सहज है, सहज त्रिया को नेह, मान बड़ाई ईर्ष्या तजबो, बहु दुर्लभ एह। जिन शासन के चमकते हीरे • १८६
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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