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________________ आप ही मेरे घर पर पधारने की कृपा करें। श्रेणिक ने कुतूहलतावश यह मंजूर कर लिया। थोड़ी देर बाद आने का आमंत्रण देकर भद्रा घर लौट आयी तथा उतने कम समय में भी सुंदर वस्त्र व रनों से राजमार्ग की शोभा राजमहल से अपने घर तक की सुंदर ढंग से सजवा दी । समय होते ही श्रेणिक राजा मार्ग की शोभा देखते देखते शालिभद्र के घर पधारे । घर पर सुवर्ण के स्तंभों पर इन्द्र नीलमणि के तोरण झूल रहे थे।' द्वार पर मोतियों के स्वस्तिक की पंक्तियाँ की हुई थी।स्थान स्थान पर दिव्य वस्त्रों के चंदोवे बंधे हुए थे और पूरा घर सुगंधित द्रव्य से महक रहा था। चकित होकर आँखे फैलाये हुए राजा चौथी मंजिल तक चढ़कर सुशोभित सिंहासन पर बैठे । पश्चात् भद्रा माता ने सातवीं मंजिल पर रहते शालिभद्र के पास जाकर कहा, 'पुत्र ! श्रेणिक आया है तो तू उसे देखने चल।'शालिभद्र बोला : माता ! इस बारे में आपको सर्व ज्ञात है तो मूल्य देना योग्य हो वह आप देदो। मुझे वहाँ आकर क्या करना है ?' भद्रा बोली : 'पुत्र ! श्रेणिक कोई किराना (खरीदने का पदार्थ) तो नहीं है । वह तो सब लोगों का और तेरा भी स्वामी है।' यह सुनकर शालिभद्र ने खेद पाया, और सोचने लगा, मेरे इस सांसारिक ऐश्वर्य को धिक्कार है कि जिसमें मेरा भी अन्य कोई स्वामी है; इसलिए मझे सर्प के फन जैसे भोगों का क्या काम ? अब तो मैं श्री वीर प्रभु के चरणों में जाकर शीघ्र ही व्रत ग्रहण करूंगा।' इस प्रकार उसे उत्कट संवेग प्राप्त हुआ, यद्यपि माता के आग्रह से स्त्रियों सहित वह श्रेणिक राजा के पास आया और विनय से राजा को प्रणाम किये। राजा श्रेणिक ने उसे गले से लगाकर स्वपुत्रवत् अपनी गोद में बिठाया और स्नेह से मस्तिष्क तक कुछ क्षणों के लिए हर्षाश्रु बहे । तत्पश्चात् भद्रा बोली, 'हे देव ! अब उसे छोड़ दीजिये, वह मनुष्य है लेकिन मनुष्य की गंध से पीड़ित होता है। उसके पिता देवता हुए हैं। वे स्त्रीयाँ सहित अपने पुत्र को दिव्य भेष वस्त्र तथा अंगराग वगैरह प्रतिदिन देते हैं।' यह सुनकर राजा ने शालिभद्र को अनुमति दी और वह सातवीं मंजिल पर चला गया। भद्रामाता की विज्ञप्ति से राजा श्रेणिक भोजन लेने के लिये रूका। भद्रा माता ने रसोई तैयार करायी और राजा को योग्य तैल और चूर्ण से स्नान कराया। स्नान करते समय श्रेणिक की अंगूठी भवन की बावड़ी गिर गई। राजा इधर-उधर ढूंढ़ने लगा, भद्रा के कहने से दासी ने बावडी का जल दूसरी और निकाल डाला। ऐसा करने से बावडी के बीच में पड़े आभूषणों के बीच फीकी दिखती मुद्रिका देखकर राजा विस्मित हो गया। कारण जानने के लिए राजा ने दासी से पूछा, 'ये सब क्या है ?' दासी बोली, 'शालीभद्र एवं उसकी स्त्रियों के निर्माल्य आभारण शेखाना जिन शासन के चमकते हीरे • १६१
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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