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निकाल कर फेंक दिये जाते हैं - ये वही हैं। यह सनकर राजाने सोचा कि, 'सर्वथा शालिभद्र धन्य है एवं मैं भी धन्य हूं कि मेरे राज्य में ऐसे धनाढ्य पुरुष भी बसते हैं।' तत्पश्चात् राजा ने परिवारसहित भोजन किया और राजा अपने राजमहल लौटा। ____ अब शालिभद्र संसार से मुक्त होने का सोच रहा था। इतने में उसके धर्ममित्र ने कहा, 'एक धर्मघोष नामक मुनि उद्यान में पधारे हैं।' यह सुनकर शालिभद्र हर्ष से रथ में बैठकर वहाँ पधारा। आचार्य एवं अन्य साधुओं को वंदना करके आगे बैठा। सूरी के देशना देने के बाद उसने पूछा, 'हे भगवान् ! कौनसे कर्म से राजा स्वामी न होवे?' मुनि बोले, 'जो दीक्षा ग्रहण करते हैं वे पूरे जगत् के स्वामी बनते हैं।' शालिभद्र ने कहा, 'यदि ऐसा ही है तो मैं घर जाकर मेरी माताजी की अनुमति लेकर दीक्षा लूंगा।' सूरी बोले, 'धर्मकार्य में प्रमाद न करना।' तत्पश्चात् शालिभद्र घर गया और माता को नमस्कार करके कहा, 'हे माता ! आज मैंने श्री धर्मघोष सूरि के मुख से धर्म सुना है कि जो धर्म इस संसार के सर्व दुःख से छूटने का उपायरूप है।' भद्रा बोली, 'वत्स ! तूने बड़ा अच्छा किया, क्योंकि तू भी वैसे ही धर्मी पिता का पुत्र है।' शालिभद्र ने कहा, 'माता ! यदि ऐसा ही है तो मेरे पर प्रसन्न होकर मुझे स्वीकृति दे दो, मैं व्रत ग्रहण करूंगा, क्योंकि मैं भी बैसे ही पिता का पत्र हैं।' भद्रा बोली, 'वत्स ! तेरा व्रत लेने का मनोरथ युक्त है, परंतु उसमें निरंतर लोहे के चने चबाने पडेंगे। तू प्रकृति से कोमल है और दिव्य भोग भोगता रहा है, इसलिए बड़े रथ के छोटे बछड़े की तरह तू व्रत का भार कैसे ढो सकेगा?'. शालिभद्र बोला : 'हे माता ! भोगलालित बने लोग व्रत के कष्टों को सहन करे नहीं तो उन्हें कायर समझना, सब कोई ऐसे नहीं होते हैं। भद्रा ने कहा : हे वत्स ! यदि तेरा ऐसा ही विचार हो तो धीमे धीमे थोड़ा थोड़ा भोग त्याग कर, पश्चात् व्रत ग्रहण करना।' शालिभद्र ने शीघ्र वचन मान्य कर लिया और उस दिन से रोजाना एक एक स्त्री और एक एक शय्या का त्याग करने लगा।
उस नगर में धन्य नामक एक धनवान सेठ रहता था। जिसको पूर्व जन्म में शालिभद्र की भाँति गरीब माँ ने दूध, चावल, शक्कर वगैरह पडौसनों से मांगकर खीर बनाकर खाने को दी थी और वह खीर तपस्वी मुनि के पधारने पर गोचरी में देदी थी उसी पुण्यकर्म के इस भव उसने रिद्धिसिद्धि पायी थी। वह शालिभद्र की बहिन से ब्याहा था। अपने बंधू के व्रत लेने के समाचार सुनकर अपने पति धन्य को स्नान कराते समय उसकी आँखों से अश्रु फूट पड़े। यह देखकर धन्य ने पछा, 'तू यों रो रही है ?' तब वह गदगद होकर बोली, 'हे स्वामी! मेरा भाई शालिभद्र व्रत लेने के लिए प्रतिदिन एक एक स्त्री एवं एक एक शय्या छोड़ रहा
जिन शासन के चमकते हीरे . १६२