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________________ को दोहद उत्पन्न हुआ । गौभद्र सेठ ने उसकी मनोकामना पूर्ण की। पूर्ण समय होने पर भद्रा ने पुत्र रत्न को जन्म दिया। देखे हुए स्वप्न के अनुसार मातापिता ने शुभदिन पर उसका नाम शालिभद्र रखा । वह आठ साल का हुआ तब उसके पिता ने स्कूल में दाखिल कराके सब कलाओं का अध्ययन कराया। युवा अवस्था प्राप्त होते ही समान आयु के मित्रों के साथ वह खेलने लगा। उस नगर के श्रेष्ठीओं ने अपनी अपनी बत्तीस कन्याएँ शालिभद्र को देने के लिए गौभद्र सेठ को विज्ञप्ति दी। गोभद्र सेठ ने हर्षित होकर उसका स्वीकार किया और सर्वलक्षण संपूर्ण बत्तीस कन्याओं का ब्याह शालिभद्र से किया। तत्पश्चात् विमान जैसे रमणीय अपने मंदिर में स्त्रियों के साथ शालिभद्र विलास करने लगा । मातापिता उसकी भोगसामग्री की पूरी करते थे । गौभद्र सेठ श्री वीरप्रभु से दीक्षा लेकर व विधिपूर्वक अनशन करके देवलोक गये। वहाँ से अवधिज्ञान द्वारा अपने पुत्र शालिभद्र को देखकर पुण्य से वश होकर पुत्रवात्सल्य में तत्पर बने और कल्पवृक्ष की भाँति उसे और उसकी बत्तीस स्त्रियों को प्रतिदिन दिव्य वस्त्र व नेपथ्य वगैरह की पूर्ति करने लगे । यहाँ पुरुष के लायक जो जो कार्य थे वे सब भद्रामाता करती थी और शालिभद्र तो पूर्वदान के प्रभाव से केवल भोग ही भुगतते थे। एक बार कोई परदेशी व्यापारी रत्न कंबल लेकर श्रेणिक राजा को बेचने आया लेकिन उसकी किंमत अधिक विशेष होने के कारण श्रेणिक ने उसे खरीदा नहीं। वह निराश होकर घूमते घूमते भद्रा के बुलाने पर शालीभद्र के यहाँ पहुँचा । भद्रामाता ने मुँह मांगा मूल्य चुकाकर सर्व कंबल खरीद ली । श्रेणिक की रानी चेलणा ने उसी दिन श्रेणिक को कहा, 'मेरे योग्य एक रत्न कंबल ला दो।' इस कारण श्रेणिक राजा ने एक रत्न कंबल खरीदने के लिए व्यापारी को दुबारा बुलवाया। व्यापारी ने कहा, 'रत्न कंबल तो सब भद्रा माता ने खरीद ली है । ' श्रेणिक राजा ने एक चतुर पुरुष को मूल्य देकर रत्नकंबल लेने के लिए भद्रा के पास भेजा। उसने जाकर रत्नकंबल मांगा तो भद्रा बोली, 'शालिभद्र की स्त्रियों के पैर पोंछने के लिए रत्नकंबल के टुकडे करके मैंने दे दीये हैं, इसलिय ये यदि जीर्ण रत्नकंबलों से कार्य चल जाये तो राजा श्रेणिक को पूछकर आओ और ले जाओ।' चतुर पुरुष ने यह वृत्तांत राजा को कहा। यह सुनकर चेलणा रानी बोली, 'देखो ! तुम्हारे और वणिक में पितल व सुवर्ण जितना अंतर है। तत्पश्चात् राजा कुतूहलता से उसी पुरुष को भेजकर शालिभद्र को अपने पास बुलाया। तब भद्रा ने राजा के पास जाकर कहा, 'मेरा पुत्र कभी घर से बाहर निकलता नहीं है, इसलिये जिन शासन के चमकते हीरे १६०
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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