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________________ • पुष्पचूला गंगा नदी के तट पर पुष्पभद्रा नामक नगर था। वहाँ पुष्पकेतु नामक राजा राज्य करता था । उसकी पुष्पावती नामक रानी थी। उस रानी ने एक बार एक साथ दो बालक जने । उसमें एक पुत्र और एक पुत्री थी। उन दोनों के नाम अनुक्रम से पुष्पचूल और पुष्पचूला रखे। ६४ - साथ साथ खेलते खेलते बड़े होते वे दोनों बालकों को देखकर राजा को एक विचार हुआ कि यदि इन दोनों बालको को ब्याह के कारण अलग होना पड़ेगा तो उनका स्नेह खण्डित होते ही वे तरसते हुए तड़प तड़प कर मर जायेंगे। मैं भी उनका वियोग सहन न कर सकूंगा, सो उनका ब्याह कर दिया जाये तो ठीक रहेगा । ऐसे विचार से उसने राज्यसभा में मंत्री के सम्मुख प्रकटरूप से पूछा, 'अंत:पुर में जो रत्न उत्पन्न होते हैं उनका स्वामी कौन ?' मंत्री ने उत्तर दिया, 'आप ही उनके स्वामी कहे जाओगे।' इससे अपने पुत्र-पुत्री का परस्पर विवाह कर दिया । यह दुष्कृत्य रानी माँ सहन न कर पाई। उन्होंने बड़ा खेद पाया और वैराग्य पाकर व्रत धारण कर लिया। तीव्र तपश्चर्या करके रानी मृत्यु पाकर स्वर्ग में देवता के रूप में उत्पन्न हुई। पुष्पकेतु राजा की भी मृत्यु हो गई सो पुष्पचूल ने राज्यपद धारण किया और अपनी सगी बहिन के साथ संसार - व्यवहार के भोग भोगते रहा । पुष्पावती का जो जीव देवरूप में उत्पन्न हुआ था, उसने वधिज्ञान से ऐसा अकृत्य होता देखकर सोचा, 'अरे रे ! इस जगत के जीव इतने अधिक कामांध हैं कि राग में आसक्त होकर कार्य-अकार्य के बारे में कुछ सोचते ही नहीं है । इन दोनों को कुछ न कुछ बोध देना जरूरी है ऐसा सोचकर पुष्पचूला पर बड़ा प्रेम होने के कारण उसको नरक के दुःख स्वप्न में दीखायें। ऐसे स्वप्न देखकर भयभीत होकर पुष्पचूला अपने पति को कहने लगी, 'पाप करने से नरक के कैसे दुख झेलने पडते है ? आज नरक के दुःख देखकर बड़ा डर उत्पन्न हो गया है।' राजा ने दूसरे दिन जोगी, बाबा आदि को राजसभा में बुलाकर पूछा, 'नरक कैसा होता है ?' किसीने कहा कि इस जगत में गर्भावास में रहना ही नरक है। दूसरे किसीने कहा कि बंदीगृह में पड़ना ही नरक है, किसीने कहा कि दरिद्रता ही नरक है, कोई बोला कि परायी ताबेदारी ही नरक है। जिन शासन के चमकते हीरे • १५२
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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