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-सिंह श्रेष्ठी
बसंतपुर नामक नगर में कीर्तिपाल नामक राजा थे। उन्हें भीम नामक एक पुत्र था। और उसको सिंह नामक एक पक्का जैन मित्र था। वह अपने कुमार से भी राजा को विशेष प्रिय था। एक बार किसी पुरुष ने आकार राजा को कहा, 'हे देव ! नागपुर के राजा नागचन्द्र को रत्नमंजरी नामक एक रूपवती कन्या है, उसके एक रोम के दर्शन करने से दो ब्रह्म का अनुभव होता है और उसका दर्शन करने से दो कामदेव की पूर्णता होती है । उस कन्या के समान अन्य कोई कन्या नहीं है। वह कन्या आपके कुमार के योग्य हैं, ऐसा सोचकर मुझे अपना विश्वासु जानकर, आपके पास प्रार्थना करने भेजा है; इसलिये उसके साथ ब्याह करने आपके कुमार को मेरे साथ भेजो।' ____ दूत के ऐसे वचन सुनकर राजा ने अपने प्रिय मित्र सिंह को कहा, 'मित्र ! हमारे दो में कुछ भी अंतर नहीं है ।आप कुमार को लेकर नागपुर जाओ और विवाह करके आओ।सिंह श्रेष्ठि ने अनर्थ दण्ड के भय से राजा को कुछ भी उत्तर न दिया; इस कारण राजा क्रोधित होकर बोला, 'क्या आपको यह सम्बन्ध जचता नहीं है ?' श्रेष्ठी बोला, राजेन्द्र ! मुझे जचता तो है लेकिन मैंने १०० योजन के उपरांत कहीं भी नहीं आने-जाने का नियम लिया है। और यहां नागपुर सवासो योजन दूर पड़ता है; इस कारण व्रत भंग होने के भय से मैं वहाँ जाऊँगा नहीं। यह सुनते ही अग्नि में घी होमने से अग्नि के समान राजा की कोपाग्नि की ज्वालाएँ विशेष प्रज्वलित हो उठी, और वह बोला, अरे ! क्या तू मेरी आज्ञा नहीं मानेगा? तुझे ऊँट पर बिठाकर सहस्र योजन तक भेज दूंगा।' सिंह बोला, 'स्वामी ! मैं आपकी आज्ञानुसार करूंगा।' यह सुनकर राजा प्रसन्न हुआ। अपने पुत्र को सैन्य के साथ तैयार करके सिंह श्रेष्ठि को हरेक क्रिया का मुखिया बनाकर कुमार के साथ भेज दिया। मार्ग में सिंह ने प्रतिबोध देकर भीमकुमार की संसारवासना तोड़ डाली। सौ योजन चलने के बाद सिंह श्रेष्ठि आगे न बढ़ा। सैनिकों ने कुमार को एकांत में कहा : 'कुमार ! राजा ने हमें गुप्त आज्ञा दी है कि यदि सिंह श्रेष्ठि सौ योजन से आगे न बढ़े तो आपको उसे बंदी बनाकर नागपुर ले जाना।'कुमार ने अपने धर्मगुरु सिंह श्रेष्ठि को इस बात का निवेदन किया। सिंह ने राजकुमार को कहा, 'कुमार !
जिन शासन के चमकते हीरे • १५०