________________
में, सेवक राजा के वाक्य में और पुत्र पिता के वाक्य में शंका लाये तो वह अपने व्रत को खण्डित करते हैं।' ऐसा खयाल करके नदी के पास गई और विनय से अपने पति के वाक्य कहे, 'हे नदी देवी ! जिस दिन से मेरे देवर ने व्रत लिया है उस दिन से लेकर यदि मेरे पति वाकई ब्रह्मचर्य व्रत को धारण कर रहे हो तो मुझे मार्ग दीजिए।' इस कारण नदी ने तत्काल मार्ग दिया। वह नदी उतरकर दूसरी ओर के देवालय मे पहुँचकर अपने देवर मुनि से धर्म सूना । मुनि ने पूछा, तुमको नदी ने किस प्रकार मार्ग दिया? इसलिये उसने जो यथार्थ था वह कह सुनाया। मुनि ने कहा, 'हे भद्रे, सुन ! मेरे सहोदर बंधु भी मेरे साथ व्रत लेना चाह रहे थे लेकिन लोगों के अनुग्रह से उन्होंने राज्य का स्वीकार किया है। वे व्यवहार से राज्य व इन्द्रियों के भोग का अनुभव करते हैं यद्यपि वे निश्चय से ब्रह्मचारी हैं। कीचड़ में कमल की तरह गृहवास रहते हुए राजा का मन निर्लेप होने से वे ब्रह्मचारी ही हैं। तत्पश्चात् रानी का अभिग्रह पूरा होने से एक कौने में जाकर साथ लाये शुद्ध आहार से अपने देवर महाराज को प्रतिलाभित किया और स्वयं भी भोजन किया। जब रानी को वापिस लौटने की इच्छा हुई तब चलते वक्त रानी ने मुनि को पूछा कि नदी पार कैसे करनी ? मुनि बोले : 'आप नदी को इस प्रकार प्रार्थना करना, 'हे नदी देवी ! जब से इन मुनि ने व्रत ग्रहण किया है तब से वे सदैव उपवासी रहकर विचरते हो तो मुझे मार्ग दो।' इससे चकित होकर रानी नदी किनारे गई और मनि के कहे अनुसार वाक्य सुनाते ही नदी ने मार्ग दे दिया। वह मार्ग उतरकर अपने घर आई। विस्मय पाकर रानी ने राजा को वृत्तांत सुनाकर कहा, हे स्वामिन्! आज ही मैंने आपके बंधु मुनि को पारणा कराया था फिर भी उन्हें उपवासी कैसे कहा जाय ! राजा बोला : हे देवी सूनोः इसके बारे में शास्त्र में कहा है कि साधू निरवध आहार करते होने से नित्य उपवासी हैं, सिर्फ उत्तर गुण की वृद्धि करने के लिए ही बे शुद्ध आहार लेते हैं, फिर भी वे उपवासी ही हैं । पति तथा देवर ने मन, वचन, काया से शीलादि धर्म स्वीकारा था उपरोक्त अनुसार शील व्रत के महात्म्य से जिस नदी ने राजा की प्रिया को मार्ग दिया, उसी प्रकार जो प्राणी उस व्रत को मन से धारण करते हैं, उसके कर्मरूप समुद्र भी अक्षर ऐसे शिव को मार्ग देते हैं।'
जिन शासन के चमकते हीरे . १४९