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________________ गई और उसे लेजाकर सुज्येष्ठा को बताई। सुज्येष्ठा भी देखनेमात्र से मोहित हो गई। उसने अभयकुमार को कहलवाया कि मेरे बाप से छिपाकर मुझे श्रेणिक के साथ शादी करनी है, उसमें तू सहायक हो।' उसकी मरजी देखकर अभयकुमार ने राजगृही से उसके महल तक की सुरंग भूमि में बनवाई और दासी के साथ कहलवाया कि अमुक दिन राजा स्वयं सुरंग मार्ग से तूझे लेने आयेंगे। श्रेणिक को भी कहलवाया । निश्चित किये हुए दिन श्रेणिक अपने चुनंदे बत्तीस आप्त पुरुष (सुलसा के पुत्रों) को लेकर सुरंग मार्ग से आया। सुज्येष्ठा वहाँ से रवाना होने लगी तो उसकी छोटी बहिन चेलणा ने भी श्रेणिक के साथ शादी करने की जिद्द पकडी, वह भी सुज्येष्ठा के साथ सुरंग में आ गई। कुछ मार्ग काटने के बाद सुज्येष्ठा को तब याद आया और बोली, 'मेरे आभूषण का डिब्बा मैं भूल आई हूँ, मैं वापिस जाकर ले आऊँ तब तक आप यहाँ से आगे बढ़ना मत।' ऐसा कहकर वह वापिस लौटी। परंतु चेलणा ने तो तुरंत श्रेणिक को कहा, 'महाराज, शत्रु की सीमा में अधिक समय तक रहना खतरे से भरा हुआ है।' ऐसा समझाकर उसके साथ चल निकली। सुज्येष्ठा आभूषणों को लेकर आई तो श्रेणिक और चेलणा को न देखें, इसलिये उन पर कोपायमान होकर अपने महल वापिस लौटी और चिल्लाने लगी, 'अरे ! यह कोई दुष्ट मेरी बहिन चेलणा को उठाकर भाग रहा है, हरण करके ले जा रहा है।' यह सुनकर राजा और सैनिक आ पहुँचे। राजा के हुक्म से सैनिक सुरंग मार्ग श्रेणिक के साथ युद्ध करने दौड़े। उस समय श्रेणिक की ओर से सुलसा के बत्तीस पुत्र सामना करके सैनिकों के साथ युद्ध करने लगे। उस समय श्रेणिक चेलणा को लेकर बहुत आगे निकल चुका था और अपने नगर में पहुंचकर तुरंत उसके साथ शादी कर ली। संग्राम में सुलसा के बत्तीस पुत्र एक साथ मारे गये। यह खबर सुनकर सुलसा दुःख व्यक्त करने लगी तब अभयकुमार ने उसे समझाया कि, समकितधारी होकर तू अविवेकी के भाँति क्यों शोक करती है ? यह शरीर तो क्षणिक है इसलिये शोक करने से क्या होगा ? इस प्रकार धार्मिक रूप से सांत्वना देकर सुलसा को शांत किया। एक बार चंपानगरी से अंबड परिव्राजक (संन्यासी वेधधारी एक श्रावक) राजगृही नगरी जाने के लिये तैयार हुआ । उसने श्री महावीर स्वामी को वंदना करके बिनती की, ‘स्वामी ! आज मैं राजगृही जा रहा हूँ।' भगवंत बोले, 'वहाँ मुलसा श्राविका को हमारा धर्मलाभ कहना ।' वह वहाँ से निकलकर राजगृही नगर आ जिन शासन के चमकते हीरे • १४५ 100 ૧૦
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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