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________________ श्री तीर्थंकर देव जैनों के देवों की मजाक उडाने में हरिभद्र को बहुत मजा आया। कुछ ही समय में हाथी वहाँ से गुज़र गया था। भय दूर हो गया सो पंडित अपने घर आ गया। इस जगत में बहुत कुछ जाननेलायक है ऐसा वे महसूस करते थे। अपने ज्ञान का गर्व होने पर भी कुछ नया बतानेवाला मिले तो समझ में न आने पर उसके चरणों में गिरकर लौटने की सहृदयता इस राजपुरोहित में अपूर्व थी। एक सायंकाल को राजकार्य निबटाकर देर से घर की और शीघ्रता से पंडित हरिभद्र जा रहे थे। अचानक उनके कानों में कुछ मधुर शब्द टकराने लगे। स्वर स्त्री का था। शब्द बड़े अपरिचित थे। मार्ग पर के मकान की खिड़की से आते उन शब्दों को हरिभद्र पुरोहित ने ध्यानपूर्वक सुनें। चक्की दुगं हरिपळ गं पळग चक्किण केसवो चक्की केसवो चक्कि केसव दु __ चक्कि के सीअ चक्कि हरिभद्र को यह गाथा नई लगी। उसमें रहे चक, चक शब्द पंडित को समझ में न आये। घर जाने की जल्दी थी फिर भी जिज्ञासाभाव उत्कट बना। वे मकान में गये। वह आवास जैन साध्वियों का था। साध्वीजी स्वाध्याय आदि धार्मिक प्रवृत्तियों में मग्न थी। गाथा बोलनेवाली साध्वीजी के पास जाकर वे विनयपूर्वक बोले : 'माताजी ! यह चाक-चीक क्या है ? यह गाथा समझ नहीं आ रही। कृपया इसका अर्थ समझाइये।' उम्र में कुछ प्रौढ़ ऐसी यकिनी महत्तरा साध्वीजीने जवाब दिया, 'भाई ! इस रात्रि के अवसर पर हम कोई पुरुष के साथ बात नहीं कर सकती। हमारी यह मर्यादा है। उसका पालन हमारे लिए उचित व हितकारी है। उपदेश देने का कार्य हमारे आचार्य महाराज का है। वे आपको इस गाथा का अर्थ समझायेंगे।' साध्वीजी के मुख से धीर-गंभीर शैली से कही गई यह बात हरिभद्र के गले में उतर गई। ___ आचार्य महाराज का स्थान ज्ञात करके पुरोहित वहाँ गये। वंदन करके जिन शासन के चमकते हीरे • १३०
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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