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________________ की हकीकत कही और प्रभु को पछा, 'मम्मण के पास ढेर सारा द्रव्य होने पर भी ऐसा जीवन व्यापन क्यों करता है?' प्रभु ने कहा, 'पूर्वभव में उसके घर कोई मुनिराज भिक्षा के लिए आये। प्रभावना में पाया हुआ उत्तम महँकदार मोदक भिक्षा मे दिया। तत्पश्चात् किसीके कहने से उसे ज्ञात हुआ कि मोदक बहुत ही स्वादिष्ट था। यह सुनकर वह भिक्षा में दिया हुआ मोदक वापिस लेने गया। रास्ते में पश्चात्ताप करते हुए सोचता गया कि ऐसा अच्छा लड्डु बेकार में ही महाराज को अर्पण कर दिया। मुनि के पास पहुंचकर भिक्षा में दिया हुआ लड्डु उसने वापिस माँगा। मुनि ने कहा, 'धर्मलाभ देकर लिया हुआ हम कुछ भी लौटा नहीं सकते है।' परंतु उसने जिद करके लड्डु प्राप्त करने के लिए पात्रों की खींचातानी की। खींचातानी मे मोदक नीचे पड़ी हुई रेत में गिर पड़ा और धूल धूल हो गया। मुनि ने वहीं खड्डा खोदकर उसे जमीन में उतार दिया। इस कारण दिये हुए दान की निंदा व पश्चात्ताप करने से धने भोगांतराय व उपभोगांतराय कर्म बांधकर मम्मण सेठ के रूप में उत्पन्न हुआ है। व न ही कुछ खा अच्छा सकता है और न ही प्राप्त की हुई संपत्ति को भोग सकता है। फिर दान देने की तो बात ही क्या? वाकई में कृपण का धन कंकर समान है। 8888888888888888888888888888888888888288888888888888888888 38888888883333338838 माया की सज्झाय समकित का जानीये मल सत्य वचन साक्षातः सचमें बसे समकित, माया में मिथ्यात्व रे, प्राणी मत कर माया तनिक विश्वास...१ मुख मीठा जूठा मन, कूड कपट का रे कोट जीभ तो जी जी करे, चित्त माहे ताके चोट रे... प्राणी २ आप गरज से दूर पडे, लेकिन न धरे विश्वास मन से रखे अंतर, वह माया का है वास रे... प्राणी०३ जिससे बांधे प्रीत. उससे रहे प्रतिकूल मैल न छूटे मनका, यह माया मूल रे... प्राणी-४ तप किया माया करके, मित्र से रखा भेद; मल्लि जिनेश्वर जानना तो पाओगे श्रीवेद रे... प्राणी-५ उदयरतन कहे सुनना जी, छोड़ो माया की बुद्ध मुक्तिपुरी जाने जैसा, यह मार्ग है शुद्ध रे... प्राणी ६ 38688 38888888888 38863 जिन शासन के चमकते हीरे . १२०
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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