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-पुणीआ श्रावक
एकबार व्याख्यान पूरा होने पर भगवान महावीर को राजा श्रेणिकने पूछा, 'भगवान! मुझे नरक का बंधन है तो नरक टले ऐसा कोई उपाय बताइये।'
प्रभु ने मार्ग बताया; उसमें एक रास्ता यह बताया कि, 'पुणीआ श्रावक के पास जाकर उसकी सामायिक का फल मोल ले आ। यह फल यदि मिल गया तो नरक नहीं जाना पड़ेगा।'
श्रेणिक महाराज को यह बात सरल लगी। उसने पुणीआ श्रावक को बुलाकर कहा, 'तेरी एक सामायिक का फल मुझे मोल दे दे। तुम कहो वह कीमत देने के लिये मैं तैयार हूँ। बोलो तुम्हें कितनी कीमत चाहिये?' । ___पुणीआ श्रावक ने कहा, 'नहीं, धार्मिक क्रिया का फल इस प्रकार बेच नहीं सकते, और उसकी क्या कीमत लगाई जाय उसका भी मुझे ख्याल नहीं है; लेकिन जिसने आपको सामायिक का फल मोल लेने को कहा है, उसे ही उसकी कीमत पूछो।'
महाराजा श्रेणिक ने भगवान के पास जाकर श्रावक का जवाब सुनाया और बिनती की कि, इस श्रावक की सामायिक की कीमत कितनी लगाई जाय वह प्रभु, मुझे वह बताइये। तब भगवान ने बताया; 'तेरा समग्र राज्य और ऋद्धि दे दे तो भी की उसकी कीमत भरपाई नहीं हो सकती, सिर्फ उसकी दलाली ही चुकाई जा सकती है, कीमत तो बाकी ही रहेगी।' दूसरी रीत से समझाते हुए कहा, कोई अश्व खरीदी के लिये जाये, उसकी लगाम की किंमत जितनी तेरी समग्र राजऋद्धि गिनी जाय और अश्व की कीमत तो बाकी ही रहेगी, उसी प्रकार पुणीआ श्रावक की सामायिक अमूल्य है। उसकी कीमत नहीं आंकी जा सकती।' यह सुनकर राजा श्रेणिक निराश हुए लेकिन पुणीआ श्रावक की सामायिक की प्रशंसा करने लगे।
अब इस पुणीआ श्रावक का जीवन कैसा था वह देखे :
पुणीआ श्रावक प्रभु महावीर का यथार्थ भक्त था। वीर की वाणी सुनकर उसने सर्व परिग्रहों का त्याग किया था। आजिवीका चलाने के लिए रूई की पूनियाँ बनाकर बेचता व उसमें से मिलते दो आने से संतोष पाता। लाभांतराय के उदय से उसे ज्यादा कुछ मिलता था। वह और उसकी स्त्री दोनों ही स्वामी
जिन शासन के चमकते हीरे . १२१