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________________ जानना । पाँचवां बोला, 'गुच्छे को भी क्यों तोड़ा जाय? उसके उपर रहे भक्षण करने । लायक फल ही तोड़कर क्षुधा को शांत कर ले।' ऐसे पुरुष को पद्मलेश्यावाला जानना चाहिये। अब छट्ठा बोला, 'हमें वृक्ष के उपर से फल तोड़ने की कोई भी जरूरत नहीं है। हमारी क्षुधा पूर्ण करने जितने जामून तो पेड़ के नीचे ही गिरे हैं, उनसे ही प्राण का निर्वाह करना ही श्रेष्ठ है । इसलिये इस पेड़ के नीचे की डालियाँ तोड़ने का विचार किसलिए करना चाहिये?' इस छठे मनुष्य की विचारशैलीवालों को शुक्ल लेश्या के परिणामवाले मानने। इसी प्रकार डकैती डालनेवाले छः पुरुष का दृष्टांतः धनधान्यादिक से लुब्ध हुए चोरों के छ: अधिपतियों ने एकत्र होकर एक गाँव में डाला डाला। उस समय उनमें से एक बोला, 'इस गाँव में मनुष्य, पशु, पुरुष, स्त्री, बालक, वृद्ध वगैरह जो कोई भी नज़र आये उन्हें मार देना चाहिये।' इस प्रकार कृष्णलेश्या के स्वभाववाले का वाक्य सुनकर दूसरा नील लेश्यावाला बोला कि, 'सिर्फ मनुष्यों को ही मारने चाहिये, पशुओं को मारने में हमें क्या लाभ?' उस समय तीसरा कापोतलेश्या का स्वभावधारी बोला, 'स्त्रियों को क्यों मारनी चाहिये? सिर्फ पुरुषों को ही मारा जाय।' तत्पश्चात् चौथा तेजोलेश्यावाला बोला, 'पुरुष में भी शस्त्ररहित को मारने से क्या लाभ? सिर्फ शस्त्रधारी को ही मारें।' यह सुनकर पाँचवा पद्मलेश्यावाला बोला कि, 'शस्त्रधारी में भी जो हमारे सामने युद्ध करने आये उसे ही मारें, अन्य निरपराधी को क्यों मारने चाहिये?' अंत मे छठ्ठा शुक्ललेश्यावाला बोला, 'अहो हो! तुम्हारे विचार कैसे खोटे हैं? एक तो द्रव्य का हरण करने आये हो और बेचारे प्राणियों को मारना चाहते हो? इसलिये यदि तुम द्रव्य ही लेने आये हो तो भले ही द्रव्य लो, लेकिन उनके प्राणों की रक्षा तो करो।' इस प्रकार छ: लेश्यावाले जीव मरकर भिन्न भिन्न गति पाते हैं। कहा है कि 'कृष्ण लेश्यावाला नरकगति पाता है, नील लेश्यावाला थावरपना पाता है, कापोत लेश्यावाला तिर्यंच बनता है, पीत लेश्यावाला मनुष्यगति प्राप्त करता है, पद्म लेश्यावाला देवलोक में जाता है और शुक्ल लेश्यावाला जीव शाश्वत स्थान पाता है। इस प्रकार भव्य जीवों को लेश्याओं के विचार जानने चाहिये। गुरु के मुख से लेश्या के स्वरूप जानकर प्रियंकर राजा ने प्रतिबोध पाया और निरंतर शुभ लेश्या में रहकर श्रावक धर्म स्वीकारा और अंत में सद्गति पाई। अपने पिता अरिदमन राजा की कापोत लेश्या के परिणामवाली कथा सुनकर तथा उनकी कीड़े के रूप में उत्पत्ति की बात महाराज के मुख से जानकर प्रियंकर राजा भले धर्म को देनेवाली शुभ लेश्यावाला बना। जिन शासन के चमकते हीरे . ११५
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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