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________________ ५० -श्री अषाढाचार्य अषाढाचार्य नामक एक शिष्ट को धर्म सुनाते हैं। शिष्य मृत्युशय्या पर है। आचार्य श्री शिष्य को प्रतिज्ञा कराते हैं कि, वह देवलोक जायेगा तो वहाँ से आकर आचार्यश्री से बाते करेगा और ऊर्ध्वगति जाने का मार्ग दिखायेगा। नवकारमंत्र सुनते सुनते शिष्य ने सम्मति दे दी और कहा, 'जरूर आऊंगा और मिलूंगा।' ____ कालानुसार शिष्य देव बना लेकिन वहाँ के भोगविलास में ऐसा आसक्त हो गया कि वह गुरु के वचन भूल गया। यहाँ गुरुदेव राह देखते रहे। __इस प्रकार से आचार्य महाराज श्री अषाढाचार्य ने चार शिष्यों से देवलोक में से आकर उनसे बात करनी - ऐसे वचन लिये। ____ कई वर्ष राह देखने पर भी उनमें से आचार्य महाराज से बात करने के लिये या धर्म प्राप्त कराने के लिए कोई आया नहीं। आचार्य महाराज को धर्म पर अश्रृद्धा जाग उठी। यह सब तूत है, पाप-पुण्य जैसा कुछ है ही नहीं। तप-चप सब बेकार के प्रयत्न हैं । यूं सोचते सोचते उन्होंने साधुता छोड़ी लेकिन साधू के भेष में ही रहते है और मन ही मन में संसारी बनने का तय करते हैं। चोथा शिष्य - जो देवलोक में है, उसने अवधिज्ञान से यह बात जानकर गुरुजी को संसारी होने से बचाने का निश्चय किया और इसी कारण से पृथ्वी पर आकर गुरुजी के विचरण मार्ग पर आकर दैवी नाटक शुरू किया। गुरूजी नाटक देखने में लीन हुए। नाटक देखते देखतें छः माह खराब हो गये। देव ने मायावी छः लड़के बनाये। वे आगे विहार करके जाते आचार्य महाराज को जंगल में मिले। एकांत जंगल में सुंदर आभूषण पहिने हुए लड़के मिलते ही अषाढा मुनि होश गँवा बैठे। लड़को के सब सोने और जवाहरात मढ़े गहने उतार लिये और लड़कों को मार कर वहाँ से आगे बढ़े। मार्ग मे एक साध्वीजी से मिले। साध्वीजी के साथ धर्मों की ठीकठीक बातें चलीं। सूरीजी बड़े शरमाये और महसूस करने लगे कि कुछ गलत हो गया है। आगे विहार करने पर एक बड़ा सैन्य मिला, जिसमें राजा-रानी वगैरह का बड़ा परिवार भी शामिल था। जिन शासन के चमकते हीरे . १११
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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