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________________ वेश्याओं ने बल का आसरा लिया। उस समय वसुमति चित्त से बड़ा खेद व्यक्त करने लगी। उसके शील की रक्षा के लिये एक देव ने आकाश में से उतरकर वेश्या का नाक काट डाला। और उसकी काया काली तुंबी जैसी कर डाली। इससे वेश्याएँ घबराकर अपने घर चली गई।सुभट वसुमति को बेचने दूसरे बाजार में गया। वहाँ धनावह श्रेष्ठी उसे खरीदने आया । उसे राजकुमारी ने उन्हें पूछा, 'आपके घर में मुझे क्या करना होगा?' सेठ ने कहा, 'हमारे कुल में जिनदेवों की पूजा, साधुओं की सेवा, धर्मश्रवण, जीवदया पालन आदि होता हैं।' धनावह सेठ की ऐसी बात सुनकर हर्षित होकर वसुमति कहने लगी, 'हे सुभट! यदि तू मुझे बेचना चाहता है तो इस सेठ को बेचना।' सैनिक ने उसे सेठ को बेच दिया। सेठ वसुमति को घर ले गया। इस प्रकार राजपुत्री शुभ कर्म से भले घर पहुंची। सेठ की स्त्री मूला उसे देखकर सोचने लगी। मेरा पति इसे स्त्री बनाकर रखने ले लिए लाया लगता है। इस समय तो उसको वह पुत्री कह रहा है, लेकिन पुरुष का मन कौन समझ सकता है? धनावह सेठ ने वसुमति का नाम चंदनबाला रखा, जिससे वसुमति अब चंदनबाला नाम से पहचानी जाने लगी। एक बार मूला सेठानी पड़ौसन के घर गई होगी। उतने में धनावह सेठ घर पर आये। उस समय चंदनबाला सेठ पिता को आसनपर बिठाकर विनयपूर्वक उनके चरण धोने लगी। उस वक्त मूला सेठानी घर पर आ गई। चंदनबाला के केशों की चोटी भूमि को छू रही थी तो सेठ ने उसे ऊंचे उठा रखा था। चंदनबाला को सेठ के चरण धोते देखकर सेठानी सोचने लगी कि सेठ किसी भी समय इसे अपनी स्त्री बना लेगा और मुझे निकाल देगा या विष देकर मार डालेगा। इसलिए विषबेल को पनपने से पहले ही काट देना चाहिये। धनावह सेठ एक बार बाहरगाँव गये थे। उस समय मला सेठानी ने चन्दनबाला कासर मुण्डवा डाला और पैर मे बेड़ी डालकर उसे तहखाने में छोड़कर ताला लगा दिया। वह अपने मन से संतोष मानने लगी, और सोचती रही कि सौतन को मारने में दोष कैसा? तहखाने में पड़ी हुई चन्दनबाला सोचती है कि मेरे कर्म ही ऐसे है। नगर में से सैनिक ने मुझे पकड़ा। मार्ग में माता की मृत्यु हुई। जानवर की तरह बाजार में बिकना पड़ा लेकिन कुछ अच्छे भाग्य से वेश्या के यहाँ बिकने से बची। अब अंधेरे में भूखे-प्यासे रहना है । हे वीतराग! तेरी शरण है, यहाँ एकांत है, धर्मध्यान करूंगी' - ऐसा सोचते हुए वह नवकार मंत्र का जप करती रहती है। इस प्रकार जिन शासन के चमकते हीरे . १०१
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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