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चंदनबाला
चंदनबाला (वसुमति) एक राजकुमारी थी। कर्मानुसार राज्य में लूट चली। राजसी पिता की मृत्यु हुई, माता धारिणी और चंदना को कोई दुष्ट सैनिक उठा ले गये। कर्म की गति विषम है। पल में रंक, पल में राजा बनाने की ताकात कर्म में ही है। चंदना को भरेबाजार में बेच दी। खरीदनेवाले धर्मिष्ठ सेठ मिले। इतने कष्ट में भी सेठ को मिलकर चंदना को प्रसन्नता प्राप्त हुई। परंतु चंदना को देखकर मूला सेठानी बड़ी जलती रहती थी। एक दिन की बात है। सेठ घर आये तो सेठानी घर पर न थी। चंदना पैर धुलाने लगी। उसके पानी में गिरते बालों को सेठ ने ऊँचे उठाये। यह दृश्य देखकर मूला सेठानी शंकित हुई। शंका का कोई कारण न था। सेठ उसे पुत्री समान मानते थे। तो भी माता समान मूला उसे कष्ट में डालने का प्रयत्न करने लगी। निर्दोष बाला का सर मुण्डवा कर उसके हाथ-पैर में बेड़ी डालकर तहखाने में डलवा दिया। तीन दिन तक सेठ को जानकारी न मिली। तीसरे दिन सेठ को जानकारी मिली तो वे बड़े दुःखी हुए। उसे बाहर निकालने के लिये गये। पहले उसे खाने के लिए सूप के कौने जितने ऊड़द के दलहन दिये। तब चंदना बेचारी सोच रही थी कि कोई भिक्षुक मिले तो उसे भोजन कराऊँ। चंदना के अहोभाग्य से आज पांच माह और पच्चीस दिन के उपवासी परमात्मा महावीरदेव भोजन के समय चंदना के पास आये परंतु उसकी आँख में आंसु न देखकर लौट पड़े। पश्चात् चंदना की आँख में आंसु देखकर प्रभु पधारे और दलहन प्रभु को भिक्षा में दिये तब साडे बारह करोड़ सुवर्णमुद्रिकाओं की बारिश हुई।
धन्य सती चंदनबाला