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-कलावती
कलावती का ब्याह शंखराज के साथ हुआ था । कलावती गर्भवती होते ही उसके मैके से भाई जयसेन प्रसूति के लिए लेजाने आया, लेकिन राजाजी ने' उसका विरह मैं नहीं सह पाऊँगा ।' कहकर भेजने के लिए ना कह दी। जयसेन अपनी बहिन के लिए उपहार में लाया हुआ संदूक देकर बिदा हुए। कलावती ने एकांत में संदूक खोली । संदूक में झगमगाते हुए दो बेरखे ( रुद्राक्ष जड़ित कंगन ) देखे और बड़ी प्रसन्न हुई । उस वक्त एक दासी वहाँ आ पहुँची। उसने पूछा, 'रानी साहिबा ! कहाँ से लाई ।' कलावती ने कहा, 'मेरे प्रिय व्यक्तियों का उपहार है ।' खतम... दरवाजे के पीछे खड़े राजाजी ने ये शब्द सुने और मन में शक का जहर चढ़ा। उसके प्रिय मेरे सिवाय अन्य कोई है।‘कलावती शरीर से खूबसूरत है लेकिन मनकी काली, कुलटा है ।' वह क्रोधित हो उठा। उसने सेवकों को आज्ञा दी कि 'कलावती को काले रथ में, काले वस्त्र पहनाकर, काला टीका करके जंगल में ले जाओ । वहाँ उसके दोनों हाथ बेरखों सहित काट कर मेरे सामने हाज़िर करो।'
रथ में बिठाकर सेवक कलावती को घोर जंगल में ले गये और नीचे उतरकर कलावती को राजा का हुक्म सुनाया। कलावती ने आँख में आंसु के साथ जवाब दिया कि, 'मेरे स्वामी को कहना, आपकी आज्ञानुसार कलावती ने बेरखों हैं सहित दोनों हाथ कटवा कर दिये हैं । काट लो दोनो हाथ और जल्दी जाकर सौंप दो राजाजी को बेरखों सहित मेरे हाथ ! '
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सैनिक ने दोनों कलाइयाँ बेरखों सहित काट कर बिदा ली। हाथ कटने से कलावती को असह्य वेदना हो रही थी । उसे मूर्च्छा आ गई। चिकित्सा के लिए वहाँ कोई न था । इस दुःख के साथ पुत्र का प्रसव हुआ । कलावती सती थी। उसका कोई दोष न था । पूर्व जन्म के कर्मों का उदय हुआ था । ऐसी असहाय स्थिति में कल्पांत कर रही थी । उसी वक्त आकाश में देव का सिंहासन कांप उठा। देव ने इस दुखी घटना को देखा। दूसरें देवदेवियों की सती को सहायता करने को कहा ।
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रुदन करती हुई कलावती के पास देवदेवियों ने आकर नमन किया और बालक को अपने हाथ में लिया। पास में ही एक छोटा महल बनाया और
जिन शासन के चमकते हीरे • ८३