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________________ पकडो.... पकडो। लोगों ने साधू को पकड़ा। स्त्री की पुकार सुनकर लोग मुनि को मारने लगे। मुनिश्री पुण्योदय के कारण से भाग रहे थे और सेठानी ने पैर से फंदा लगाकर मुनि को नीचे गिराने का खेल किया था वह इस नगर के राजा ने अपने महल के झरोखे से खड़े खड़े देखा था। वे शीघ्र ही नीचे उतरे और लोगों को सत्य हकीकत बताई कि 'यह स्त्री अपनी बदनामी ढकने के लिए इस पवित्र साधू को कलंक दे रही है। मुनिश्री तो सच्चे और पवित्र संत है । यह लफड़ेबाजी तो उस दुष्टं सेठानी की है।' लोगोंने मुनिश्री के चरणों मे गिरकर क्षमा माँगी। मुनिश्री की जयजयकार हुई। राजा ने सेठानी को अपने उग्र पाप का फल भुगतने देशनिकाल की सजा दे दी। मुनिश्री का नाम तो था मदनब्रह्म मुनि । उनके पैर में झांझर फंस जाने कारण वे झांझरिया मुनि के नाम से पहचाने जाने लगे। ऐसी कठिन कसौटी में से गुजरने बाद मुनिश्री उज्जैन नगरी में पधारें। घरघर गोचरी लेते थे। एक दिन राजा रानी झरोखे में बैठकर सोकटाबाजी खेल रहे थे। रानी मुनि को देखकर मुस्कुराई और तुरंत रोने लगी। टप टप आंसु गिरने लगे। यह देखकर राजा को शक हुआ, जरूर ये मुनि भूतकाल में मेरी रानी का यार रहा होगा। राजा ने चुपके से सेवकों को बुलाकर मुनि को पकड़ा और गहरा खड्डा खोदकर उसमें खडे करके सेवकों को मुनि की गर्दन उड़ा देने का हुक्म दिया। सेवक गर्दन काटने के लिये तैयार हुए और मुनिश्री समतारस में डूब गये। शत्रु को मित्र मानकर उनका उपकार मानने की ऊँची भावना में डूबते गये। सेवकों ने राजा की आज्ञानुसार मुनि का शिरच्छेद कर डाला। अंत होने से पूर्व मुनि ने उच्च भावना के प्रताप से केवलज्ञान पाया और वे मोक्ष पधारे। ___ राजा प्रसन्न होते हुए राजमहल की ओर चले। एक चील माँस का पिंड समझकर खून से सना ओघा चोंच में धर कर उडत । भवितव्यता के योग से ओघा राजमहल के चौक में गिरा । सेवकों द्वारा रानी ने बात जानी। ओघा देखकर रानी ने पहचान लिया कि यह ओघा जरूर मेरे भाई मदनब्रह्म का है, उन्हे जरूर किसीने मार डाला है। रानी फूटफूटकर रोने लगी। रानी का रुदन सुनकर राजा दौड़ता हुआ आया, राजा को तब बात समझ में आई की मुनि तो रानी के सगे भाई थे। राजा ने कबूल किया कि शंका के कारण मुनि को उसने ही मरवा डाला है। अब राजा और रानी रुदन करने लगे। रानी ने अन्न-जल का त्याग करके अनशन ग्रहण किया। राजाजी मुनिश्री के कलेवर के पास जाकर क्षमापना करने लगे और प्रबल पश्चाताप करते करते, अनित्य भावना व्यक्त करते करते राजा को भी केवलज्ञान प्राप्त हुआ। जिन शासन के चमकते हीरे • ८२
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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