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________________ -श्री झांझरिया मुनि मदनब्रह्म एक राजकुमार थे। वे भर जवानी में थे।बत्तीस सुन्दर राज्यकन्याओं के साथ उनका ब्याह हुआ था। स्वर्ग के भाँति आनन्द लेते हुए काल व्यतीत कर रहे थे। एक बार इन्द्रोत्सव मनाने नगरी की प्रजा सुंदर वस्त्र परिधान करके उद्यान में गई। राजकुमार मदनब्रह्म भी बत्तीस नववधूओं के साथ उद्यान में क्रीडा कर रहे थे। इतने में उनकी दृष्टि एक त्यागी मुनिवर पर पड़ी, वंदना करने की इच्छा से वे मुनिराज के पास पहुँचे। विधिपूर्वक वंदन करके वे नववधूओं के साथ उनकी वैराग्यभरी अमोघ देशना सुनने बैठे। मुनीश्री की अमृतभरी देशना सुनते ही मदनब्रहम राजकुमार की आत्मा जाग उठी। उन्हें समझ आ गई कि आत्म क्या है और उसी पल बत्तीस नववधूओं को छोड़कर उन्होंने संयम ग्रहण कर लिया। ज्ञान की आराधना करके वे विद्वान व गीतार्थ बने। विहार करते करते मदनब्रह्म मुनि खंभात (उस समय की त्रंबावटी) नगरी में पधारें। मध्याह्न समय पर गोचरी पर निकलते मुनि को एक सेठानी ने झरोखे से देखा । सेठानी को कई वर्षों का पतिवियोग था। कामज्वर से पीड़ित सेठानी की भावना बिगड़ उठी थी और कोई मौका ढूंढ रही थी। वहाँ यह भरपूर जवान मुनि को देखा । मन में हर्षित हो गई वह और अपनी वासना पूर्ति के लिए अपनी नौकरानी को भेजा कि जा, उन मुनि को ले आ। दासी दौड़ी हुई गई और मुनि को बिनती की, 'पधारिये गुरुदेव!' सरल स्वभाव से मुनि वहाँ पधारे। मकान का दरवाजा सेठानी ने बंद कर दिया और हावभाव और नखरे करने लगी। मुनिश्री को मोहवश करने के खूब प्रयत्न किये लेकिन मुनिश्री व्रत में अटल थे। मीठी वाणी से सेठानी को धर्म-उपदेश देने लगे। मोहांध और तीव्र वासना से पीड़ित सेठानी धर्मदेशना पर ध्यान न देकर मुनिश्री को लिपट पड़ी।मुनिश्री ने सोचा, यहाँ से शीघ्र ही नीकल जाना चाहिये। यहाँ ज्यादा रहने से दुष्ट स्त्री मेरा व्रत भंग करेगी। ऐसा विचार करके मुनिश्री ने हाथ छुडाकर द्वार खोला और भागने लगे। लेकिन कामी स्त्रीने भागते मुनि को अपने पैर के फंदे से मुनि को नीचे गिरा दिया। पैर का फंदा डालते हुए स्त्री का झांझर मुनि के पैर में फंस गया और सेठानी जोरो से चिल्लाने लगी कि पकड़ो... पकड़ो... इस दुष्ट अणगार को... वह मेरा शील भंग करके भाग रहा है। जिन शासन के चमकते हीरे • ८१
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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