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छोटी सोने की मचिया बनाकर बालक को बिठाकर झूला डालने लगे। कलावती मंत्र का जाप करे जा रही थी और दोनों शेष बचे हए हाथ साफ-सफाई के लिए पानी में डूबोये। सतीत्व और नवकार मंत्र के प्रताप से दोनों हाथ बेरखें सहित पूर्वानुसार हो गये। राजाजी के पास दोनों कलाइयाँ बेरखे सहित पहुँच गई। उसी समय देव सुगुनिये का वेश लेकर राजाजी के पास पहुंचे। राजाजी को प्रणाम करके उनके सामने बैठकर उदासीनता का कारण पूछा। राजाजी ने हकीकत बताई। सुगुनिये ने दोनों कलाईयाँ देखकर कहा, ये बेरखें तो कलावती के दो भाई जयसेन और विजय ने भेजे हैं। उनके नाम बेरखों पर हैं। यह जानकर राजा को बड़ा दुःख पहुँचा। कलावती को खोजने के लिये सेवकों को दौड़ाया, और जो सेवक कलावती को जंगल में छोड़ आये थे, उनके साथ कलावती के पास पहुंच गया। सोने के झूले पर बालक के साथ झूलती कलावती को देखकर वह बहुत हर्षित हुआ।
कलावती भी पति को आते देखकर बहुत हर्षित हुई। सामने से दौड़कर आते हुए पति के हाथ में पुत्र को रख दिया। __ श्री महावीर स्वामी विचरण कर रहे थे, उनके पास जाकर राजा-रानी ने किन कर्मों के कारण हाथ कटे हैं, उसका कारण पूछा। भगवान ने पूर्वभव बताया कि 'तू कलावती पूर्वभव में राजा की कन्या थी और राजा का जीव एक तोते का था। उसके पंख तूने काट डाले थे जिससे पिंजरे से वह उड न जाय। इस कारण से तोते के जीव राजाजी ने तेरी कलाइयाँ कटवा डाली।' अब कलावती को संसार में रहना योग्य न लगा। आपकी वस्तु आप संभालो' कहकर राजाजी को पुत्र सौंप दिया और प्रभु के पास जाकर संयम ग्रहण कर लिया। शील के प्रभाव से उत्तम संयम पालकर मुक्ति पाई।
। दीन दुःखी तथा अशक्त वगैरह जीवों के प्रति ।
दयापूर्वक दुख दूर करने की वृत्ति, वह है करणा।
जिन शासन के चमकते हीरे . ८४