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________________ उनको वंदन करके दृढ़प्रहारी कहने लगा, 'मैंने स्त्री, ब्राह्मण, गाय तथा बालगर्भ की हत्या की है । तो हे कृपानिधि! नरकगति से मुझे बचाइये - एक ही प्राणी के वध से गति होती है तो मेरा क्या होगा? कौनसी गति होगी? महात्मा! मुझे बचाइये । मुझे आपकी दीक्षा दीजिये।'गुरु ने उसको संसार से विरक्त जानकर संयम दिया।दृढ़प्रहारी ने दीक्षा लेकर तप करते करते ऐसा अभिग्रह लिया कि जिस जिस दिन मुझे यह मेरा पाप याद आयेगा, उस उस दिन मैं आहार नहीं लूंगा और यदि कोई दुश्मन मुझे मार डालेगा तो मैं उसे क्षमा करूंगा।' ___ ऐसे अभिग्रह के साथ कई बार डकैती डाली थी उस कुशस्थल नगर में भिक्षार्थ जाता । वहाँ उसको देखकर नगर के लोग, 'गो-ब्राह्मण-स्त्री-बालहत्यारा' कह कर लाठी व पत्थर आदि से मारने लगते । लेकिन ये महात्मा शांत चित्त से सब सहन करते करते चिंतन करने लगे, 'हे जीव! तूने इस प्रकार से अनेक जीवों की निर्दयतापूर्वक हत्या की है। कइयों की लक्ष्मी तथा स्त्रीयों का हरण किया है, बहुत असत्यों का उच्चारण किया है, अनेक कुटुम्ब में स्त्रीयों से बालकों का वियोग कराया है। अब यह सबकुछ सहन करने की बारी तेरी है, तो इन सब के उपसर्ग तुझे सहन करने चाहिये। उनके अपराधों को क्षमा देनी। कोई भी संजोग में क्रोध ही न करना । ये लोग मेरे कर्मों का क्षय करने में वे मित्रों की भाँति मदद कर रहे हैं। मुक्तिरूपी सुख देने न सोची हुई सहायता कर रहे हैं। उनके उपर क्रोध ही मत कर । दोष देना है तो अपने कर्म को दोष देना। मेरे तो ये परम बांधव हैं। अहो! मैं तो मेरे कर्म नष्ट कर रहा हूँ लेकिन इन लोगों का क्या होगा? ये उपसर्ग करने से वे नरक जाने के लायक कर्म बांधेगे।' इस प्रकार वे लोगों के प्रति करुणा भाव की वृत्ति रखने लगे। ऐसी उत्तम भावना की मनोवृत्ति रखते रखते उनके अध्यवसाय पल पल शुद्ध होते रहे । क्रमानुसार उन्होंने चौदहवाँ गुणस्थानक प्राप्त करके केवलज्ञान पाया। 808805388 8288888888885 88888888 38888888888 3%8888888888 8888888883888 मनुष्य कैसा होना चाहिये? वाणी में सुमधुर सयाना, भव्य दिखनेवाले, लेकिन नम्र स्वभावका और निर्भय लेकिन विनयशील शिष्याचारवान और मद हृदयवान। एडवान आरनाल्ड जिन शासन के चमकते हीरे • ७७
SR No.002365
Book TitleJinshasan Ke Chamakte Hire
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVarjivandas Vadilal Shah, Mahendra H Jani
PublisherVarjivandas Vadilal Shah
Publication Year1997
Total Pages356
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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