________________
(२७
-श्री दृढ़प्रहारी
एक नगर में जीर्णदत्त नामक ब्राह्मण रहता था। उसे यज्ञदत्त नामक एक उद्धत पुत्र था। कालानुसार यज्ञदत्त के माता-पिता की मृत्यु हुई। बचपन से मृगया खेलने जाता था जिससे मृग के शिकार में वह कुशल था लेकिन गरीबी के कारण जीना मुश्किल लगा, और वह नगरी के बाहर चोर लोगों की पल्ली में पहुँच गया। वहाँ पल्लीपति भीम को मिला। पल्लीपति को पुत्र न था इसलिये उसने यज्ञदत्त को अपना पुत्र बनाकर रखा।
किसी भी प्राणी पर वह अचूक प्रहार करके मार सकता था जिससे उसका नाम दृढ़प्रहारी पड़ा। पल्लीपति ने अपना अंतकाल समीप जानकर दृढ़प्रहारी को अपने तख्त पर बिठाया, दृढ़प्रहारी पल्लीपति बन गया। रात्रि को भील सेवकों के साथ मिलकर चोरी, डकैती आदि कुकर्म करने लगा। एक दिन कुशस्थल नामक गाँव लूटने गये। गाँव में देवशर्मा नामक ब्राह्मण रहता था। उसके घर पर भील सेवकों ने डाका डाला। देवशर्मा बाहर जंगल में गये थे। उसके पुत्र ने दौड़ते हुए, जंगल मे पहुँचकर पिता को यह बात बताई। देवशर्मा क्रोधित होकर लाठी लेकर दौड़ता हुआ चोरों को मारने चला। दृढ़प्रहारी ने लाठी लेकर मारने आते देवशर्मा को देखा और उस पर प्रहार करके उसके मस्तिष्क के टुकड़े कर डाले । उस दौरान एक गाय भी चोरों को सिंग से मारने आ पहुँची, उसे भी दृढ़प्रहारी ने मार डाली। देवशर्मा की मृत्यु की खबर सुनकर उसकी गर्भवती स्त्री भी हाहाकार मचाती हुई घर से बाहर आई। उसे भी दृढ़प्रहारी ने गर्भसहित मार डाला।
इस प्रकार एक साथ ब्राह्मण, गाय, स्त्री तथा गर्भ की हत्या करके दृढ़प्रहारी कांप उठा और सोचने लगा, 'अहो हो, यह मैंने क्या किया! इस ब्राह्मण व उसकी स्त्री की हत्या करने से उसके बालकों का क्या होगा? मैं ही उनके दुःख का कारण बना। ऐसे दुष्कृत्य का भार मैं कैसे सहन करूंगा? भवकूप में गिरते हुए मेरा अवलम्बन कौन बनेगा?' इस प्रकार सोच रहा था कि वहाँ से गुजरते हुए शांत मनवाले, धर्मध्यान में लीन व सर्व जीव की रक्षा करनेवाले साधुओं को देखा। उनको देखते ही वह मनमें सोचने लगा, 'अहा! इस लोक में ये साधु पूजने योग्य हैं, वे क्षमावंत भी है।'
जिन शासन के चमकते हीरे • ७६