SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदि शब्द से खग, मुरज, चक्र, गोमुत्रिकादि का ग्रहण किया है और प्रहेलिका (१७) के अन्तर्गत उक्ति वैचित्र्य मात्र से च्युत दत्ताक्षरादि भेज होते है। आचार्य अमरचन्द्रसूरि (१२४३ से १२६१) ने कविशिक्षा की काव्य कल्पलता वृत्ति में श्लेषसिद्धि प्रतान के चित्रप्रपञ्च में इसका कुछ विस्तार से विचार किया है। इसमें प्रश्नोत्तर, प्रहेलिका, बन्ध इत्यादि के लक्षण और उदाहरण प्राप्त होते है। महाकवि अजितसे न विरचित (१२-१३वीं शताब्दी) अलंकारचिन्तामणि के द्वितीय परिच्छेद में पूर्ण रूप से चित्रकाव्य का ही वर्णन है। इसमें विस्तार पूर्वक चित्रालङ्कार का प्रतिपादन किया गया है। इस परिच्छेद में चित्रालङ्कार के ४२ भेद प्रतिपादित किए है और उनके उदाहरण भी प्रस्तुत किए गए हैं:- १. व्यस्त, २. समस्त, ३. द्विव्यस्त, ४. द्विःसमस्त, ५. व्यस्तसमस्त, ६. द्वि:व्यस्त-समस्त, ७. द्विःसमस्तक-सुव्यस्त, ८. एकालापकम्, ९. प्रभिन्नक, १०. भेद्यभेदक, ११. ओजस्वी, १२. सालंकार, १३. कौतुक, १४. प्रश्नोत्तर, १५. पृष्ट-प्रश्न, १६. भग्नोत्तर, १७. आधुत्तर, १८. मध्योत्तर, १९. अन्त्योत्तर, २०. अपह्नत, २१. विषम, २२. वृत्त, २३. नामाख्यात, २४. तार्किक, २५. सौत्र, २६. शाब्दिक, २७. शास्त्रार्थ, २८. वर्गोत्तर, २९. वाक्योत्तर, ३०. श्लोकोत्तर, ३१. खण्ड, ३२. पदोत्तर, ३३. सुचक्रक, ३४. पद्म, ३५. काकपद, ३६. गोमूत्र, ३७. सर्वतोभद्र, ३८. गत-प्रत्यागत, ३९. वर्द्धमान, ४०. हीयमानाक्षर, ४१. श्रृंखला और, ४२. नागपाशक। ये शुद्ध चित्रालंकार है। इनके अतिरिक्त अर्थप्रहेलिका की गणना भी चित्रालंकारों में की है। लक्षणशास्त्र के समस्त ग्रन्थों में जहाँ चित्रकाव्य के दो-चार भेद ही प्राप्त होते है वहाँ केवल रुद्रट ने कुछ अधिक भेद प्रस्तुत किए हैं और विदग्धमुखमण्डन में ६८ भेद प्राप्त होते हैं- जबकि परवर्ती अजितसेन के अलङ्कार चिन्तामणि में ४२ भेद प्राप्त होते हैं । अतः विद्वज्जन भेदों की दृष्टि से विदग्धमुखमण्डन, प्रश्नोत्तरैकषष्टिशतक और अलङ्कारचिन्तामणि का समीक्षात्मक अध्ययन कर प्रस्तुत करेंगे तो वह चित्रकाव्य प्रेमियों के लिए उपकारक होगा। संस्कृत साहित्य में प्रसिद्ध महाकाव्यों में चित्रबन्ध के कतिपय उदाहरण प्राप्त होते हैं वे निम्न हैं:
SR No.002344
Book TitlePrashnottaraikshashti Shatkkavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Somchandrasuri, Vinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages186
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy