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________________ महाकवि भारवि (७वीं शताब्दी) के किरातार्जुनीय महाकाव्य, सर्ग १७-गोमूत्रिका, सर्वतोभद्र एवं अर्द्धभ्रमक के उदाहरण प्राप्त होते हैं। महाकवि माघ (१०वीं शताब्दी) शिशुपाल वध महाकाव्य सर्ग १९सर्वतोभद्र, मुरज, गोमूत्रिका, अर्द्धभ्रमक, चक्र और गत-प्रत्यागत, एकाक्षर, व्यक्षर आदि के उदाहरण मिलते हैं। ____महाकवि श्रीहर्ष (१२वीं) के नैषधीय चरित्र महाकाव्य में कोई चित्रकाव्य नहीं है। महाकवि हरिश्चन्द्र प्रणीत धर्मशर्माभ्युदय महाकाव्य सर्ग १९ में गोमूत्रिका, अर्द्धभ्रम, सर्वतोभद्र, मुरज, षोडशदल पद्म और चक्र इत्यादि काव्य प्राप्त होते हैं। स्तोत्र साहित्य में रचित ग्रन्थ वस्तुत: लक्षणशास्त्रियों के द्वारा प्रणीत काव्य-ग्रन्थों के रचना से पूर्व ही अर्थात् विक्रम की पाँचवी शताब्दी के पूर्व ही जैन कवियों द्वारा स्तोत्रों में इस बन्ध का प्रयोग मिलता है। कहा जाता है कि भगवान महावीर के शिष्य नन्दीषेण ने अजितशान्ति स्तोत्र की रचना की। इस स्तोत्र में निम्न बन्ध प्राप्त होते हैं:- चतुष्पट, वापिका अथवा दीपिका, मङ्गलकलश, गुच्छक, वृक्षबन्ध, षड्दलकमल और अष्टदलकमल। ___ स्वामी समन्तभद्र रचित जिनशतक (स्तुतिविद्या) तो पूर्णत: चित्रकाव्यात्मक है:- मुरज, अर्द्धभ्रम, गत-प्रत्यागत, चक्र, अनुलोम, प्रतिलोम और चक्रबन्ध श्लोक। स्तोत्र परम्परा में तो इसके पश्चात् अनेकों महाकवियों ने चित्रकाव्यात्मक रचनाएं की हैं। जिनमें से प्रमुख है:- जिनवल्लभसूरि, जिनप्रभसूरि, मुनिसुन्दरसूरि, उपाध्याय हर्षकुल, उपाध्याय श्रीवल्लभ, उपाध्याय सहजकीर्ति और महोपाध्याय मेघविजय प्रणीत स्तोत्र काव्यों और विज्ञप्ति पत्रों को देखा जा सकता है। विस्तार भय से उनके स्तोत्रों के नाम और बन्धों के नाम यहाँ नहीं दिए जा रहे हैं। सा. महोपाध्याय नानूराम संस्कर्ता ने राजस्थानी लोक साहित्य पृष्ठ २०२ पर शुद्ध पहेलियों के १४ नामोल्लेख किए है।:- समागता, वंचिता, व्युतक्रांता, प्रयुषिता, समानरूपा, परूषा, संख्यता, प्रकलिपता, नामान्तिरिता, निभृता, समानशब्दा, संमूढा, परिहारिका, एकच्छना, उभयच्छना और संकीर्णा ।
SR No.002344
Book TitlePrashnottaraikshashti Shatkkavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Somchandrasuri, Vinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages186
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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