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________________ दण्डि (६वीं शती) कृत काव्यादर्श (तृतीय परिच्छेद) में गोमूत्र आदि चित्रबन्ध काव्य और प्रहेलिका का उल्लेख तो प्राप्त होता है किन्तु विशेष वर्णन नहीं। उद्भट्ट के काव्यालङ्कारसारसंग्रह और वामन के काव्यालङ्कारसूत्रवृत्ति (चौथा अधिकरण) में उल्लेख अवश्य प्राप्त होता है किन्तु विशेष वर्णन प्राप्त नहीं होता। रुद्रट (११वीं शती) कृत में काव्यलङ्कार के पंचम अध्याय में चित्रकाव्यों का विस्तार से वर्णन प्राप्त होता है। चित्रालङ्कार का निरुपण करते हुए वे लिखते है: भङ्गयन्तरकृततत्क्रमवर्णनिमित्तानि वस्तुरूपाणि। साङ्गानि विचित्राणि च रच्यन्ते यत्र तच्चित्रम्॥१॥ चित्रों के लक्षणों का वर्णन कर उनके विशिष्ट भेदों का उल्लेख करते हुए उनके उदाहरण भी देते है: तश्चक्रखङ्गमुसलैर्बाणासनशक्तिशूलहलैः। चतुरङ्गपीठविरचितरथतुरगगजादिपदपाठैः॥ २॥ अनुलोमप्रतिलोमैरर्धभ्रममुरजसर्वतोभद्रैः। इत्यादिभिरन्यैरपि वस्तुविशेषाकृतिप्रभवैः॥ ३॥ भेदैर्विभिद्यमानं संख्यातुमनन्तमस्ति नैतदलम्। तस्मादेतस्य मया दिड्मात्रमुदाहृतं कवयः॥४॥ आदि शब्द से पद्मबन्ध, मात्राच्युत, बिन्दुच्युत, प्रहेलिका, कारकगूढ़, क्रियागूढ, प्रश्नोत्तर आदि के उदाहरण भी प्राप्त होते हैं। राजशेखर (१०वीं शती) कृत काव्यमीमांसा में चित्रालङ्कार का कोई वर्णन प्राप्त नहीं होता है। महाराजा भोज (११वीं शती) ने सरस्वतीकण्ठाभरण के द्वितीय परिच्छेद श्लोक संख्या १०९ से १३० में चित्रकाव्यों के विस्तार से लक्षण एवं उदाहरण दिये हैं। चित्र के मुख्यतः ६ भेद बतलाए है। वर्ण, स्थान, स्वर, आकार, गति और बन्ध। वर्णस्थानस्वराकारगतिबन्धान्प्रतीहयः। नियमस्तद्बुधैः षोढा चित्रमित्यभिधीयते ॥ १०९॥
SR No.002344
Book TitlePrashnottaraikshashti Shatkkavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Somchandrasuri, Vinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages186
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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