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________________ . [ ७६ ] हिंसा हि नरकद्वार-दीपिका निमिता सती । सुताद्यर्थेऽपि देव्यग्ने छाहिंसकविप्रवत् ॥ ७९ ॥ पदच्छेदः-हिंसा हि नरकद्वारदीपिका निर्मिता सती, सुताद्यर्थे अपि देव्यग्रे छागहिंसकविप्रवत् । - अन्वयः-हि सुताद्यर्थे अपि निर्मिता सती हिंसा नरकद्वारदीपिका भवति देव्यग्रे छागहिंसकविप्रवत् । शब्दार्थः-हि=क्योंकि, सुताद्यर्थे पुत्रादि के लिए, अपि=भी, निर्मिता सती की गयी, हिंसा=वध, नरकद्वारदीपिका नरक के द्वार को दिखाने वाली, भवति होती है। देव्यग्रे=देवी के सामने, छागहिंसकविप्रवद्=बकरे को मारने वाले ब्राह्मण की तरह । श्लोकार्थः-क्योंकि पुत्रादि के लिए की गयी हिंसा भी नरक के द्वार को दिखाने वाली होती है। जैसे कि देवी के सामने बकरे की हिंसा करने वाला ब्राह्मण (नरक में गया)। संस्कृतानुवादः-यतो हि पुत्राद्यर्थे निर्मिता हिंसा नरकद्वारस्य प्रकाशिका भवति । यथा देव्यग्रे छागहिंसकविप्र इव ।। ७६ ।।
SR No.002337
Book TitleDharmopadesh Shloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1993
Total Pages144
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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