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________________ * भोगाः * [ ७१ ] अभुजानोऽपि भोगादीन, प्राणी दुनियोगतः। अधोगति व्रजेत् कोप-वान् राजगृहभिक्षुवत् ॥७१॥ पदच्छेदः-अभुजानः अपि भोगादीन् प्राणी दुनियोगतः अधोगति व्रजेत् कोपवान् राजगृहभिक्षुवत् । अन्वयः-कोपवान् प्राणी भोगादीन् अभुजानः अपि दुर्ध्यानयोगतः राजगृहभिक्षुवत् अधोगतिं व्रजेत् । - शब्दार्थः-कोपवान् क्रोधी, प्राणी जीवधारी, भोगादोन्= भोगादिक को, अभुजानः अपिः=नहीं भोगते हुए भी, दुर्ध्यानयोगतः=दुष्टध्यान के योग से, राजगृहभिक्षुवत् राजगृह के भिक्षु की तरह, अधोगति अवनति को, व्रजेत् प्राप्त करे । श्लोकार्थः-क्रोधी मानव सांसारिक भोगादिकों को नहीं भोगते हुए भी दुनि के योग से राजगृह भिक्षु की तरह अधोगति को प्राप्त करता है । ____ संस्कृतानुवादः-कोपवान् प्राणी भोगादीन् प्रभुञ्जानोऽपि दुर्ध्यानयोगतः राजगृहभिक्षुरिव अवनति गच्छेत् ॥ ७१ ।।
SR No.002337
Book TitleDharmopadesh Shloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1993
Total Pages144
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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