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________________ * धर्मधीः ६ [६६ ] रूपयौवनवामाक्षी - भोगस्वजनसम्पदः । गणयेत् तृणवत् प्राणी, जम्बूस्वामीव धर्मधीः ॥ ६६ ॥ पदच्छेदः-रूपयौवनवामाक्षी-भोगस्वजनसम्पदः गणयेत् तृणवत् प्राणी जम्बूस्वामीव धर्मधीः । अन्वयः-धर्मधीः प्राणी जम्बूस्वामी इव रूपयौवनवामाक्षी भोगस्वजनसम्पदः तृणवत् गरणयेत् । शब्दार्थः-धर्मे धीर्यस्यासौ धर्मधीः--धर्म में बुद्धि रखने वाला, प्रारणी देहधारी मानव, जम्बूस्वामी इव=जम्बूस्वामी की तरह। रूपयौवनवामाक्षीभोगस्वजनसम्पदः = सौन्दर्य, यौवन, कामिनी, भोग, अपने स्वजन और सम्पत्तियों को, तृणवत्=घास की तरह। गणयेत्=गिनना चाहिए। श्लोकार्थः-धर्म में बुद्धि रखने वाला मानव जम्बूस्वामी की तरह सौन्दर्य, जवानी, कामिनी, भोग, स्वजन और सम्पत्तियों को तिनके की तरह (तुच्छ) गिने । संस्कृतानुवादः-धर्मधीः प्राणी जम्बूस्वामीव रूपयौवनवामाक्षीभोगस्वजनसम्पदः तृणवत् गणयेत् ।। ६६ ।। ( ६७ )
SR No.002337
Book TitleDharmopadesh Shloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1993
Total Pages144
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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