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________________ - * साधुदर्शनम् * [ ६५ ] साधूनां दर्शनं बोधि-बीजलाभाय निर्मितम् । भवेन्नन्दनयुग्मस्य, यथा भृगुपुरोधसः ॥ ६५ ॥ पदच्छेदः-साधूनां दर्शनम् बोधिबीजलाभाय निर्मितम् । यथा भवेत् नन्दनयुग्मस्य भृगुपुरोधसः । अन्वयः-साधूनां दर्शनं बोधिबीजलाभाय निर्मितम् । यथा भृगुपुरोधसः नन्दनयुग्मस्य (साधुदर्शनं बोधिबीजाय) भवेत् । __ शब्दार्थः-साधूनां साधुओं का, दर्शनं दर्शन, बोधिबीजलाभाय बोधिबीज के लाभ के लिए, निर्मितम् = निर्मित है। यथा -- जैसे, भृगुपुरोधसः= भृगुपुरोहित के, नन्दनयुग्मस्य दोनों पुत्रों का ।। श्लोकार्थः-साधुओं का दर्शन बोधिबीज के लाभ के लिए निर्मित किया गया है। जैसे भृगुपुरोहित के दोनों पुत्रों के लिए साधुदर्शन बोधि का बीज हुमा । ___संस्कृतानुवादः-साधूनां दर्शनं बोधिबीजलाभाय निर्मितमस्ति । यथा-भृगुपुरोहितस्य पुत्रद्वयस्य कृते साधुदर्शनं बोधिबीजं अजायत ।। ६५ ।।
SR No.002337
Book TitleDharmopadesh Shloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1993
Total Pages144
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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