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________________ * अलोभता * [ ५६ ] जगति दुर्गतिमूलनिबन्धनं, जिनवरनिरधारि परिग्रहः । तदभिघातनिमित्तमलोभतां, कपिलसाधुवदाश्रय सज्जन ! ५६ पदच्छेदः-जगति दुर्गतिमूलनिबन्धनम् जिनवरैः निरधारि परिग्रहः तत् अभिघातनिमित्तम् अलोभताम् कपिलसाधुवद् आश्रय सज्जन ! ___अन्वयः-जिनवरैः दुर्गतिमूलनिबन्धनम् परिग्रहः निरधारि, तदभिघातनिमित्तम् हे सज्जन ! कपिलसाधुवद् प्रलोभतां आश्रय । शब्दार्थः-जिनवरैः जिनेन्द्रों ने, दुर्गतिमूलनिबन्धनम् = दुर्गति का मूल कारण, परिग्रहः परिग्रह को, निरधारि= निश्चय किया है। तदभिघातनिमित्तम् =उस परिग्रह को नाश करने का कारण, अलोभतां अलोभपने को, कपिलसाधुवद् - कपिलसाधु की तरह, पाश्रय पाश्रय करो। श्लोकार्थः-जिनवरों ने दुर्गति का मूल कारण परिग्रह को निश्चित किया है। उस परिग्रह को नाश करने के कारण अलोभपने का हे सज्जन ! कपिलसाधु की तरह प्राश्रय करो। संस्कृतानुवादः-जिनेन्द्रः दुर्गतिमूलनिबन्धनं परिग्रहो निरधारि तदभिघातनिमित्तम् हे सज्जन ! कपिलसाधुवद् अलोभतामाश्रय ।। ५६ ।।
SR No.002337
Book TitleDharmopadesh Shloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1993
Total Pages144
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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