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________________ * गुरुः क [ ४५ ] धर्माधर्मफलं नान्यो, दर्शयेद् गुरुमन्तरा । प्रदेशिनृपवज्जन्तु, निरयाद् गुरुरुद्धरेत् ॥ ४५ ॥ पदच्छेदः-धर्माधर्मफलं न अन्यः दर्शयेत् गुरुम् अन्तरा प्रदेशिनृपवत् जन्तु निरयात् गुरुः उद्धरेत् । अन्वयः-गुरु' अन्तरा अन्यः धर्माधर्मफलं न दर्शयेत् प्रदेशिनृपवत् गुरुः जन्तु निरयात् उद्धरेत् । शब्दार्थः-गुरु =गुरु के, अन्तरा=बिना, अन्यः= दूसरा, धर्माधर्मफलं धर्म और अधर्म का फल, न=नहीं, दर्शयेत् दिखावे । प्रदेशिनृपवत्=प्रदेशी राजा की तरह, गुरुः गुरु, जन्तुं जीव को, निरयात् नरक से, उद्धरेत्= उद्धार करे । श्लोकार्थः गुरु के सिवाय दूसरा कोई भी धर्म और अधर्म के फल को नहीं दिखावे । प्रदेशी राजा की तरह गुरु ही जीवात्मा को नरक से बाहर निकालता है। ___संस्कृतानुवादः-गुरुमन्तरा अन्यः कश्चिदपि धर्माधर्मफलं न दर्शयेत् । प्रदेशिनृप इव गुरुः जन्तु नरकात् उद्धरति ।। ४५ ॥
SR No.002337
Book TitleDharmopadesh Shloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1993
Total Pages144
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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