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________________ * धर्मोपदेशः * [ ४२ ] धर्मोपदेशो दातव्यः, सुधिया बोधहेतवे । जितशत्रुक्षितिपति - यथाऽमात्यसुबुद्धिना ॥ ४२ ॥ पदच्छेदः-धर्मोपदेशः दातव्यः सुधिया बोधहेतवे जितशत्रुक्षितिपतिः यथा अमात्यसुबुद्धिना। अन्वयः-सुधिया बोधहेतवे धर्मोपदेशः दातव्यः यथा अमात्यसुबुद्धिना जितशत्रुक्षितिपतिः । . शब्दार्थः-सुधिया बुद्धिमान् के द्वारा, बोधहेतवे= बोध देने के लिए, धर्मोपदेशः धर्म का उपदेश, दातव्यःदेना चाहिए; यथा जैसे, अमात्यसुबुद्धिना=मन्त्री सुबुद्धि के द्वारा, जितशत्रुक्षितिपतिः=जितशत्रु नामक राजा। श्लोकार्थः-बुद्धिमान् को चाहिए कि वह ज्ञान देने के लिए धर्मोपदेश दे; जैसे अमात्य सुबुद्धि के द्वारा राजा जितशत्रु को धर्मोपदेश दिया गया था। संस्कृतानुवादः-बुद्धिमता बोधहेतवे धर्मोपदेशः प्रदातव्यः । यथा सचिवेन सुबुद्धिना जितशत्रुर्न पतिरुपदिष्टः ॥ ४२ ॥ ( ४३ )
SR No.002337
Book TitleDharmopadesh Shloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1993
Total Pages144
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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