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________________ * दुष्टात्मा * [ ४१ ] जन्तूद्धरणबुद्धींश्च, श्रमरणांश्च महात्मनः । दुष्टात्मा पीडयन् पीडां, लभते नमुचिर्यथा ॥ ४१ ॥ पदच्छेदः-जन्तून् उद्धरणबुद्धीन् च श्रमणान् च महात्मनः दुष्टात्मा पीडयन् पीडां लभते नमुचिः यथा । अन्वयः-दुष्टात्मा जन्तून् उद्धरणबुद्धीन् च श्रमरणान् महात्मनः च पीडयन् पीडां लभते यथा नमुचिः । शब्दार्थः-दुष्टात्मा=दुष्टजन, जन्तून् जीवों को, उद्धरणबुद्धीन् = उद्धार करने की बुद्धिवालों को, श्रमणान् = साधुओं को, महात्मनः=महात्माओं को, पीडयन् पीड़ा देता हुआ, पीडां दुःख को, लभते पाता है। यथा = जैसे, नमुचिः =नमुचि । ___श्लोकार्थः-दुष्टात्मा मानव क्षुद्र जीवों को, उद्धार करने की बुद्धि वाले साधुओं और महात्माओं को पीड़ा देता हुआ स्वयं दुःख प्राप्त करता है; जैसे नमुचि ने दुःख प्राप्त किया । संस्कृतानुवादः-दुष्टात्मा मानवः क्षुद्रजन्तून् उद्धरणबुद्धीन् साधून महात्मनश्च पीडयन् स्वयं दुःखं प्राप्नोति । यथा नमुचिना दुःखमनुभूतम् ।। ४१ ।। ( ४२ )
SR No.002337
Book TitleDharmopadesh Shloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1993
Total Pages144
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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