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* धर्मः *
[ १०८ ] कुर्यात् पराक्रमं भूय, प्रात्ममृत्युभयच्छिदे । कंसस्येव परं मृत्युभीधर्मादेव गच्छति ॥ १०८ ॥
पदच्छेदः-कुर्यात् पराक्रमं भूयः आत्ममृत्युभयच्छिदे कंसस्य इव परं मृत्युभीः धर्मात् एव गच्छति ।
अन्वयः-प्रात्ममृत्युभयच्छिदे भूयः पराक्रमं कुर्यात्, मृत्युभीः कंसस्य इव धर्मात् एव गच्छति ।
शब्दार्थः-प्रात्ममृत्युभयच्छिदे अपनी मृत्यु के भय के नाश के लिए, भूयः=फिर से, पराक्रम पराक्रम को, कुर्यात् करना चाहिए, मृत्युभीः मृत्यु का भय, कंसस्य इव कंस की तरह, धर्मादेव धर्म से ही, गच्छति= जाता है।
श्लोकार्थः-अपनी मृत्यु के भय को नष्ट करने के लिए मानव को फिर से पराक्रम करना चाहिए। मृत्यु का भय कंस की तरह धर्म से ही जाता है ।
संस्कृतानुवादः-स्वकीयमृत्युभयनाशार्थं मानवो भूयः पराक्रमं कुर्यात् । मृत्युभीः कंसस्येव धर्माचरणादेव गच्छति ।। १०८ ।।
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