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________________ * जिनस्तुतिः * _ [ १०६ ] व्याधिध्वंसो भवेज्जन्तो,-गुणनेन जिनस्तुतेः । भक्तामरप्रभावेण, राजहंसकुमारवत् ॥१०६ ॥ पदच्छेदः-व्याधिध्वंसः भवेत् जन्तोः गुणनेन जिनस्तुतेः । भक्तामरप्रभावेण राजहंसकुमारवत् । अन्वयः-जिनस्तुतेः गुणनेन जन्तोः भक्तामरप्रभावेण राजहंसकुमारवत् व्याधिध्वंसः भवेत् । __ शब्दार्थ:-जिनस्तुतेः जिनेश्वर भगवान की स्तुति का, गुणनेन=गुणगान करने से, जन्तोः प्राणी का, भक्तामरप्रभावेण भक्तामरस्तोत्र के प्रभाव से, राजहंसकुमारवत्= राजहंस कुमार को तरह, व्याधिध्वंसः व्याधि-रोगों का विनाश, भवेत् = होवे । श्लोकार्थः-श्रीजिनेश्वर भगवान की स्तुति करने से प्राणी के भक्तामर स्तोत्र के प्रभाव से राजहंसकुमार की तरह सब तरह के व्याधि-रोगों का विनाश होता है । संस्कृतानुवादः-जिनेश्वरस्तुतेः कीर्तनेन प्राणिनः भक्तामरस्तोत्रप्रभावेण राजहंसकुमार इव व्याधिविनाशो भवेत् ।। १०६ ।। ( ११० )
SR No.002337
Book TitleDharmopadesh Shloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1993
Total Pages144
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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