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________________ * सेवा * [ १०७ ] महात्मनां निर्ममाणामपि सेवा फलप्रदा । यथा नमि-विनम्योः श्रीवृषभस्वामिसेविनोः ॥ १०७ ॥ पदच्छेदः-महात्मनां निर्ममारणाम् अपि सेवा फलप्रदा, यथा नमि-विनम्योः श्रीवृषभस्वामिसेविनोः ।। अन्वयः-निर्ममारणां महात्मनां अपि सेवा फलप्रदा यथा नमि-विनम्योः श्रीवृषभस्वामिसेविनोः (सेवा फलप्रदा जाता) । शब्दार्थः-निर्ममाणां ममत्व से रहित, महात्मनां अपि महात्माओं की भी, सेवाशुश्रूषा, फलप्रदा=फल देने वाली, यथा=जैसे, श्रीवृषभस्वामिसेविनोः= श्रीवृषभस्वामी की सेवा करने वाले, नमि-विनम्योः नमि और विनमि की। श्लोकार्थः-ममत्व से रहित निष्कामभावना वाले महात्मा पुरुषों की भी सेवा फल देने वाली होती है। जैसे श्रीवृषभदेव प्रभु की सेवा करने वाले नमि और विनमि की सेवा फलप्रदा हुई। संस्कृतानुवादः-ममत्वरहितानां महात्मनामपि सेवा फलप्रदा भवति; यथा श्रीवृषभस्वामिसेविनोः नमिविनम्योः सेवा फलदाता जाता ।। १०७ ॥ ( १०८ )
SR No.002337
Book TitleDharmopadesh Shloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1993
Total Pages144
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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