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पूजय, जपं कुरु । यदि त्वं संसारसागरात् पारं गन्तुमिच्छसि तदा तु सर्वसुखप्रदायकं एतदनन्तरं कोऽप्युपायः साधीयान् सुकरश्च न वर्त्तते ।
* हिन्दी अनुवाद - देवाधिदेव भगवान् श्रीप्रादीश्वर ने कहा कि - हे भरत ! तुम समस्त चित्त विकृति- विविध भ्रान्ति पैदा करने वाले कार्यों को छोड़कर के पूरी तत्परता, निष्ठा, मनोयोग एवं श्रद्धा के साथ श्रीजिनेश्वर - पूजन में मन लगाओ और नाम जप-जाप करो । यदि तुम इस असार संसार-सागर से मुक्त होना चाहते हो तो सर्व सुखप्रदायक अक्षय आनन्दकारक प्रभु-पूजा करो । इससे श्रेयस्कर तथा सुलभ अन्य कोई भी मुक्ति मोक्ष का उपाय नहीं है ।। ५४ ।।
[ ५५ ]
D मूलश्लोक:
जिनादेशं चक्री क्षितितलसमेतेन शिरसा
वहन् पादौ नत्वा सुरपतिनरेन्द्रश्च महितौ । प्रपेदे स्वावासं सुरपतिनिवासैरुपमितं, ततोऽसौ प्रारेभे जिनवरगुरूणां सुसदनम् ॥ ५५ ॥
5 संस्कृत भावार्थ:- सर्वज्ञविभोः श्रीश्रादिनाथजिनेन्द्रस्य निदेशं लब्ध्वा चक्रवर्ती भरतः सर्वसुरासुरेन्द्रादिपूजितं
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