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परित्यज्य प्रतिदिनं भक्त्या विधिपूर्वक पूजनं विधेयम् । समये-समये महती पूजामहोत्सव स्वविधेयः ।
* हिन्दी अनुवाद-प्रथम तीर्थंकर भगवान् श्रीआदीश्वर ने फरमाया कि-हे भरत ! क्षुधाों को अन्नदान करने के बाद भी सभी जिनेश्वरदेवों के मन्दिर यथाशक्ति इन्द्रभवन के समान दिव्यरूप में निर्मित करवायो तथा प्रत्येक जिनेश्वरदेव की प्रतिमा, विधिविधान तथा श्रद्धा-भक्ति-उत्सव के साथ प्रतिष्ठित करके नित्य श्रद्धापूर्वक पूजन करो तथा समय-समय पर बड़ी पूजा तथा महोत्सव का भी भक्तिपूर्वक आयोजन करो ।। ५३ ॥
[ ५४ ] - मूलश्लोकःपरं कार्य हित्वा प्रतिदिनमना बहुलता , सपर्या सत्कार्या सत्समिह धेया जिनवराः। त्वया तार्य चायं भवजलनिधिः पूर्वविधिना , इतो नान्यो लोके वरतरउपायो भवहरः ॥ ५४ ॥
+ संस्कृतभावार्थः-देवाधिदेवेन भगवता श्रीआदिनाथजिनेश्वरेण निगदितम् हे भरत ! त्वं सकलकार्य परित्यज्य निर्दोषजिनेश्वरं सभक्तिः, सश्रद्धः सन् शान्तचित्तेन प्रभु