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* हिन्दी अनुवाद-भगवान् श्रीपादीश्वर ने कहा है कि पूर्वोक्त बातों को ध्यान में रखकर के यथाशक्ति यथाभक्ति भूखों को 'अन्नदान' देना चाहिए। ऐसा करने से भूखों की क्षुधा-शान्ति तथा सन्मार्ग-प्रवृत्ति तो होती ही है, साथ हो मुझे भो प्रसन्नता होती है कि मेरी आज्ञा का पालन हुअा। माता-पिता तथा गुरुजनों की सेवा से भी दीन, होन, क्षुधार्तों को अन्नदान देना श्रेयस्कर है। अन्नदान सभी दानधर्मों में प्रमुख है ।। ५२ ।।
[ ५३ ] । मूलश्लोकःततो भव्यं कार्य जिनपतिगुरूणां सुसदनं , विशालं सद्रव्यैः सुरपतिनिकायादपि वरम् । विधेया सर्वेषां जिनवरगुरूणां सुप्रतिमाः , प्रतिष्ठाः सद्भक्त्या पुनरपि विधेया वरम हैः ॥ ५३ ॥
+ संस्कृतभावार्थः-प्रथम - तीर्थङ्करेण भगवता श्रीपादीश्वरेण प्रोक्तम्-हे भरत ! क्षुधार्तेभ्योऽन्नदानान्तरं सर्वेषामपि जिनेश्वराणां यथाशक्ति उत्तमोत्तमं इन्द्रभवनमिव जिनमन्दिर निर्मापितव्यम् । मन्दिर - निर्माणानन्तरं प्रतिमन्दिरे श्रोजिनेश्वर-प्रतिमा शास्त्रोक्तविधिविधानैः महोत्सवैः भक्तिभरितैः प्रतिष्ठा-स्थापितव्या । प्रमादं