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________________ * हिन्दी अनुवाद - जैसे ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की प्रखर किरणों से सूखता हुआ वृक्ष वर्षा ऋतु के समय बादलों से वर्षित जल को प्राप्त करके पुनः हरा-भरा हो जाता है और चिरकाल तक सरस फल-फूल प्रदान करता रहता है, ठीक उसी प्रकार भूखा व्यक्ति भी सदन्न प्राप्त करके जीवनशक्ति को पुनः प्राप्त करके सत् कार्यों में प्रवृत्त होता है । पश्चात् निरन्तर धर्म करते हुए अनन्त, अक्षय, अतुलनीय परमपद मोक्ष को भी प्राप्त करता है ।। ५१ ।। [ ५२ ] मूलश्लोक: ततो भक्त्या शक्त्या द्रुतमिति विधेयं शिवकरं, प्रिये चानेनाहं क्षुधितमनुजोऽप्याति शमनात् । शुश्रूषा पितृरणां वचनकररणात् स्याद् वरतरा, अयं मुख्यो धर्मः क्षुधितजनताराधनमयः ।। ५२ ।। 5 संस्कृत भावार्थ:- भगवता श्रीश्रादीश्वरेण प्रोक्तं यत् यथाशक्ति यथाभक्ति क्षुधार्तेभ्योऽन्नदानं शीघ्रमेव प्रदातव्यम् एतेन क्षुधार्त्तानां क्षुधानिवृत्तिस्तु भवत्येव । अहमपि प्रसीदामि यदनेन ममाज्ञानिर्वाह: कृत इति । पितृणां गुरूणां सेवादिकं क्षुधार्तेभ्यो अन्नदानान् न्यूनतरम् । सदन्नदानधर्मे सर्वस्माद् विशिष्यते ।। ५२ ।। , ६८
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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