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________________ करने में प्रवृत्त हो जाता है । ऐसे समय में, यदि उसे सहजता से कदन्न ज्वार, बाजरा, कोदों ( कोद्रव) आदि भी भोज्य रूप में उपलब्ध हों तो क्षुधा भूख निवृत्ति हो जाती है । सदन्न गेहूँ, चावल आदि की तो बात ही और है, उसकी प्राप्ति से क्षुधार्त व्यक्ति कुकर्म छोड़कर सत् कर्म में प्रवृत्त हो जाता है, सभी इन्द्रियाँ अपने यथोचित कार्य में लग जाती हैं ।। ५० ।। [ ५१ ] मूलश्लोक: , यथा शुष्यन् वृक्षो जलभरमसौ प्राप्य जलदात् फलेभ्यः पुष्पेभ्यः स्पृहयति सुदत्ते बहुतरम् । तथैवान्न प्राप्ते त्वियमपि तनुः प्राप्य स्वमसून्, सदा सूते धर्मं शिवसुखमनन्तं च लभते ।। ५१ ।। संस्कृतभावार्थ:- यथा ग्रीष्मतौं तपनतापेन शुष्यन् वृक्षः वर्षाकाले मेघैर्जलमवाप्य हरितो भवति, चिरकालं यावत् सरसफलकुसुमसमृद्धिञ्च वितनोति । तथैव बुभुक्षितं शरीरमपि सदन्न लब्ध्वा पुनः संजीवनीं शक्तिमाप्नोति, चिरं यावत् धार्मिककार्यं कुर्वन् श्रन्ते जीवोऽनन्तं सुखमयं मोक्षमपि लभते ।। ५१ ।। ६७
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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