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________________ पूजा के मार्ग से अनेक भव्य पुरुष मोक्षगामी हुए हैं । अतः 'महाजनो येन गतः स पन्थाः ' इस सूक्ति के अनुसार मूत्तिपूजा का अनुसरण करो। यह सहज और सरल मार्ग है ।। ४३ ।। [ ४४ ] - मूलश्लोकःचतुर्भिनिक्षेपैगति जगदानन्द जनकैः , वरनिनिविगतमदमोहै विरचिताः । स्तवैभव्यैर्भावैर्मधुमयरसैद्रव्यनिकरैः । जिनेन्द्राणां पूजा जनयति न केषां शिवसुखम् ॥ ४४ ॥ संस्कृतभावार्थः-परमतत्त्वमर्मज्ञैर्वीतरागैश्च ज्ञानेन ध्यानेन परमविज्ञानेन नाम-स्थापना-द्रव्य-भावैः प्रकटिता प्रकर्षमयोश्रीजिनमत्तिपूजा चित्ताकर्षकैः सरलशब्दस्तवकै र्भावप्रसूनैश्च सततं पूजनीया। एषा मूर्तिपूजा केषां कल्याणं न विदधाति ? सर्वेषामपि पूजकानामाराधकानां भद्रं शिवं कल्याणं करोतीति निश्चितम् ।। ४४ ।। * हिन्दी अनुवाद-परम तत्त्व को जानने वाले वीतरागदेव तथा महामनीषियों ने अपने अलौकिक ज्ञानध्यानात्मक शोध के द्वारा नाम, स्थापना, द्रव्य तथा भावात्मक चार निक्षेपों से समुल्लसित मूर्तिपूजा करने का --- ५६ --
SR No.002336
Book TitleJinmurti Pooja Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1994
Total Pages206
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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