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संस्कृतभावार्थः-त्रिलोकीनाथ-परमेश्वर-श्रीजिनेन्द्रदेवस्य द्रव्यपूजा, भावपूजा च विशुद्ध मनसः परिणाम विशेषे स्तः । मनसो विशुद्धे परिणामे प्रतिष्ठिते सति मोक्षफल हस्तामलकवत् सम्प्राप्नोति करतलम् । तत्र दीक्षा भिक्षा नापेक्ष्यते। जिनमूर्तिपूजा सुदूरमोक्षप्रसादारोहणार्थं कल्याणकारिणी प्रथमापदं पङ्क्तिरस्तीति ज्ञानिभिः कथितम् । यूयमपि विबोधिनो मिथ्यात्वं परित्यज्य पूजयन्तु श्रीजिनेश्वरदेवं द्रव्येण भावेन वा। अनेन मार्गेणानेकैभव्यपुरुषैः मोक्षोऽवाप्तः। अतो 'महाजनो येन गतः स पन्थाः' इति सूक्तिमनुसरन्तु ।
* हिन्दी अनुवाद-त्रिलोकीनाथ परमेश्वर श्रीजिनेश्वरदेव की द्रव्यपूजा तथा भावपूजा विशुद्ध मन की विशेष परिणति हैं। मानस के विशुद्ध परिणाम के प्रतिष्ठित होने पर मोक्षफल हस्तगत हो जाता है। ऐसा होने पर दीक्षित होने, मुनिवेष धारण आदि की भी कोई अपेक्षा नहीं रहती है। जिनमूर्तिपूजा सुदूर मुक्ति-मोक्षमहल पर आरूढ़ होने के लिए प्रथम सोपान का काम करती है ।
इसलिए तुम सब (मूर्तिपूजा विरोधी भी) मिथ्यात्व का परित्याग करके वीतराग श्रीजिनेश्वर भगवान की द्रव्यपूजा और भावपूजा में तल्लीन हो जानो। इस मूति
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